एक शिक्षक को बचाने दूसरे को बनाया ‘बलि का बकरा’: कोर्ट के आदेश को दिखाया ठेंगा...

एक शिक्षक को बचाने दूसरे को बनाया ‘बलि का बकरा’: कोर्ट के आदेश को दिखाया ठेंगा...

बिलासपुर शिक्षा विभाग में ट्रांसफर नीति की धज्जियां उड़ाने वाला एक बड़ा मामला बिलासपुर जिले में सामने आया है। उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सरवानी के भौतिकी व्याख्याता राजेश कुमार तिवारी के प्रशासनिक स्थानांतरण के बावजूद दो साल से उनका यथावत पदस्थ रहना, और इसी पद पर शासन के आदेश से आए शिक्षक घनश्याम देवांगन को ‘अतिशेष’ घोषित कर देना, यह साफ दर्शाता है कि किस तरह अफसरशाही ने न्यायालय के फैसले और शासन के आदेशों को ठेंगा दिखा दिया।

कोर्ट ने दिया आदेश, अफसरों ने किया अनदेखा
राजेश तिवारी का तबादला वर्ष 2023 में मुंगेली जिले के हरदी स्कूल में हुआ था। उन्होंने इस पर आपत्ति जताते हुए कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन अंततः न्यायालय ने शासन के आदेश को सही ठहराया और तिवारी को कार्यमुक्त कर मुंगेली भेजने के निर्देश दिए। लेकिन विभाग ने न तो तिवारी को रिलीव किया और न ही उन्हें स्थानांतरित स्थल पर भेजा। उल्टे, सरवानी स्कूल में तिवारी को बनाए रखा और वहीं शासन द्वारा नियुक्त घनश्याम देवांगन को भी पदस्थ कर दिया। नतीजतन, एक ही विषय के दो शिक्षक एक ही स्कूल में पढ़ा रहे हैं और दोनों को वेतन भी बिलासपुर से ही मिल रहा है।

पर्दाफाश तब हुआ जब देवांगन को बनाया गया अतिशेष
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि हाल ही जारी युक्तियुक्तकरण सूची में घनश्याम देवांगन का नाम 'अतिशेष' बताकर शामिल कर दिया गया, जबकि वास्तविकता यह है कि वे शासन के आदेश पर पदस्थ हुए थे। तिवारी, जिनका स्थानांतरण हो चुका था, उन्हें बचाने के लिए देवांगन को बलि का बकरा बना दिया गया।

देवांगन जब जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में अपनी आपत्ति लेकर पहुंचे, तो आवेदन तो ले लिया गया लेकिन पावती नहीं दी गई। इसके बाद उन्होंने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने उनके आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसके उलट कुछ अन्य चुनिंदा आवेदन पर त्वरित कार्यवाही करते हुए सूची तक संशोधित कर दी गई।

कलेक्टर के सामने हुआ खुलासा
बुधवार को जब देवांगन ने कलेक्टर से सीधे मुलाकात कर पूरे मामले की जानकारी दी और साक्ष्य सौंपे, तो मामला पूरी तरह उजागर हो गया। अब देखने वाली बात यह है कि शिक्षा विभाग इस अंधेरगर्दी पर क्या कार्रवाई करता है।

गंभीर सवाल:
    क्या कोर्ट के आदेश को जानबूझकर नज़रअंदाज करना प्रशासनिक अपराध नहीं?
    क्या शासन के निर्देशों की अवहेलना पर जिम्मेदार अधिकारी दंडित होंगे?
    कितने और ऐसे मामले बाकी हैं जिनमें ट्रांसफर के बावजूद शिक्षक अपनी जगह पर डटे हैं?

यह मामला न सिर्फ शिक्षक देवांगन के अधिकारों का हनन है, बल्कि एक बड़े प्रशासनिक षड्यंत्र की झलक भी देता है। सवाल अब यह है कि क्या सरकार इस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई करेगी या फिर न्याय के लिए संघर्षरत शिक्षक यूं ही सिस्टम से हारते रहेंगे?