लोकतंत्र की महत्ता को बनाए रखने के लिए आपातकाल की याद जीवंत रखना जरुरी: शाह

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को कहा कि जनता के मन में लोकतंत्र की महत्ता और आस्था को बनाए रखने के लिए आपातकाल की याद जीवंत रखना जरूरी है और यदि इसे भुला दिया जाए तो यह लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन सकता है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री शाह ने आज यहां प्रधानमंत्री संग्रहालय में “आपातकाल के 50 वर्ष” विषय पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया है। आपातकाल जैसी घटना, लोकतंत्र की नींव को हिला दिया था यदि उसकी स्मृति समाज के मन से मिटने लगे, तो यह किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन सकता है। ऐसी घटनाओं की स्मृति युवाओं और किशोरों की चेतना से धीरे-धीरे मिटने लगती है, तब इस प्रकार की संगोष्ठियां और ‘संविधान हत्या दिवस’ जैसे आयोजन उस स्मृति को पुनर्जीवित करने का कार्य करते हैं।
कार्यक्रम में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष अनिर्बान गांगुली और पाञ्चजन्य के प्रमुख संपादक हितेश शंकर सहित अन्य लोग उपस्थित रहे। श्री शाह ने कहा कि अक्सर लोगों के मन में सवाल उठते हैं कि 50 वर्ष पहले हुए आपातकाल की चर्चा करने का अब औचित्य क्या है? प्रधानमंत्री श्री मोदी ने यह निर्णय लिया कि 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा तब भी यह सवाल बार-बार उठाए गए। लेकिन आज का दिन इस संगोष्ठी के लिए सबसे उपयुक्त है। क्योंकि हर तरह की घटना के 50 वर्ष पूरे होने पर सामाजिक स्मृति में उसकी तस्वीर धुंधली पड़ने लगती है।
आपातकाल जैसी घटना, लोकतंत्र की नींव को हिला दिया था, यदि उसकी स्मृति समाज के मन से मिटने लगे, तो यह किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन सकता है। लोकतंत्र और तानाशाही केवल व्यक्ति से जुड़े हुए नहीं हैं, बल्कि मन की दो अलग-अलग प्रवृत्तियां हैं, जो मानव स्वभाव में निहित हैं। ये भावनाएं समय-समय पर समाज और देश के समक्ष फिर से उभर कर चुनौती बन सकती हैं। अगर तानाशाही की प्रवृत्ति दोबारा चुनौती बन सकती है, तो लोकतांत्रिक स्वभाव भी देश के कल्याण के लिए उतना ही आवश्यक है।