साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से
प्रदीप नायक प्रदेश अध्यक्ष सदगुरु कबीर सेना छत्तीसगढ़
????यमपुरी दण्ड????
यमराज ने कहा, • स्वामी जी अपने पुरी को प्रत्यक्षरूपेण आपको नहीं घुमा सकता हूं। चूंकि वहां जाने का अर्थ है पाप की कमाई। पापरूपी नाव पर बैठ कर ही उन लोकों में आप जा सकते हैं। दूसरी बात आपके पृथ्वी पर जो पापी हैं, वे समझ जायेगें हमारे कि पृथ्वी से स्वामी जी आए हैं। वे दुष्ट आत्माएं आपको घेर लेंगी। फिर आप करूणावश उनका उद्धार करने लगेंगे। सो उचित नहीं है। अभी आप पितर लोक में ऐसा किये हैं। अन्य लोकों में शिक्षाएं दी जाती हैं। इस यातना पुरी में नहीं। मैंने भी यही उचित समझा। आप जैसे उचित समझते हैं वही करे। यमराज ने कहा-आप मेरे पास ही बैठे रहें। यहीं से अपने लोक के एक-एक यातना कक्ष को दिखाते हैं। आप देखते जाएं। मैं भी यहीं से अवलोकन करता हूं। सामने के दीवार पर देखें। मैं सोचता हूं कि आप के भूखण्ड के लोगों को ही दिखा दूं।
मैं मुड़कर बैठ गया। सामने दीवार थी। यमराज ने कुछ इशारा किया। दीवार पर ही चित्र स्पष्ट दिखाई देने लगा। कुछ व्यक्ति अच्छे श्वेत वस्त्रों में थे। खादी पहन रखे थे। इन्हें कुछ लोग मार रहे थे। कुछ कुत्ते इनका मांस नोच नोच कर खा रहे थे। कौवे ऊपर से ठोकर मार रहे थे। गिद्ध इनका मांस नोच रहे थे। इसी तरह का दूसरा दृश्य दिखाई पड़ा। कुछ सम्भ्रान्त व्यक्ति बैठे थे। सूटेड-बूटेड थे। उन पर भी इसी तरह का कृत्य हो रहा था। वे बेबस थे। चिल्ला रहे थे। रो रहे थे। तड़प रहे थे। परंतु उनका सुनने वाला कोई नहीं था। बड़ी असहनीय पीड़ा थी। मेरे मुंह से अनयास निकल गया यह क्या ? दृश्य समाप्त हो गया। यमराज ने क्रूर मुस्कान लेते हुए कहा-स्वामी जी यहां का दण्ड विधान पृथ्वी के को देख कर बदलते रहता है। ये प्रथम पुरुष नेता थे। इन्हें राज काज मिला। ये जनता के पैसे का दुरुपयोग किये घुसखोरी, जमाखोरी, राजका गमन किये। घोटाला किये हैं। अतएव इनका रक्त, मांस, नोच-नोचकर ये जीव खा रहे हैं जो इनसे बदला लेने के लिए सोच रहे थे। जो इनके शोषण का शिकार हुए हैं। वही खा रहे हैं। दूसरे व्यक्ति पृथ्वी के उच्चाधिकारी हैं। अपनी सारी प्रतिभा का प्रयोग इन्होंने लूटने, खसोटने, चोरी करने में लगाया है। ये सदा ऐसा सोचते रहे हैं कि सभी खजाना खा भी जाऊं तथा समाज में ईमानदार भी बना रहूँ। ये महान पातकी हैं। सरकार से मोटी तन्ख्वाह भी लेते सुख सुविधा भी लेते। उन्हें घूस एवं जनता के हक को भी लूटते। आपने भी अपने प्रवचन में कहा है कि ये इस पृथ्वी के सबसे ज्यादा पातकी हैं। ये अक्षम्य हैं, अतएव इन्हें और विभिन्न तरह का कष्ट दिया जायेगा।
यमराज ने कहा, आगे देखा जाये कुछ राजपुरुषों पर यमराज के गण लगातार छुरे-भाले बरसा रहे थे। उन्हें अग्नि में झोक रहे थे। जलते हुए इनकी कोई रक्षा नहीं करता था। पुनः दृश्य समाप्त हुआ। ये राज पुरुष राज नेता एवं अधिकारी गण ही है। अपने स्वार्थवश गद्दी पाने के लिए ये दंगा करा देते हैं। विभिन्न जाति- सम्प्रदाय के नाम पर लोगों को जला देते हैं। मौत के घाट उतार देते हैं। ये पृथ्वी पर स्वयं कुकृत्य करते हैं। स्वयं जांच का नाटक करते हैं। स्वयं न्यायकर्ता होते हैं। अपने को निर्दोष साबित कर पुनः जनता को मूर्ख बनाते हैं। इन्हें यहां दण्ड दिया जाता है। पुनः पृथ्वी पर ये भेजे जायेंगे।
तीसरा दृश्य प्रगट हुआ। सुंदर सुंदर औरतें थीं ये भी रानी के परिधान में थीं। इन्हें खौलते हुए तेल के कड़ाहों में डाला जा रहा था। कहीं जलाया जा रहा था। कहीं इन्हें शृंगाल खा रहे हैं। कहीं बिच्छू डंक मार रहे हैं। इनकी वेदना असह्य है।
दृश्य समाप्त हुआ स्वामीजी ये पृथ्वी की राजनीतिज्ञ हैं या अधिकारी वर्ग की औरतें हैं। ये भी चाल चरित्र समाप्त चुड़ैल बन गयी है। ये भी पुरुष की तरह अत्याचार में भागीदार हैं। इन्हें भी वही दण्ड दिया जा रहा है।
चौथा दृश्य सामने प्रकट हुआ महात्मा है। सामने लिखा है ये पृथ्वी पर भगवान के अवतार के रूप में अपने को प्रचारित किये हैं। ये दो-तीन इनकी पत्नी है। इन्हें हजारों-लाखों लोग मार रहे हैं। कोई नोच रहा है। ये लहूलुहान हो रहे हैं। पानी पानी बचाओ चिल्ला रहे हैं। कोई सुन नहीं रहा है।
दृश्य समाप्त हुआ स्वामी जी ये आपके पृथ्वी पर ही अपने को भगवान कृष्ण का अवतार प्रचारित किए थे। धार्मिक उन्माद फैलाकर लोगों का शारीरिक मानसिक, आर्थिक शोषण किया। ये तीन पलिया हैं इसकी। इसके बाद बहुतो से इसका नाजायज संबंध था। यह महान ढोंगी है। राक्षस वृति का है। अपने डूब गया। साथ ही उसके शिष्य अनुयायी भी दूध गये। इसके अनुयायी ही यहां मार रहे हैं। नोच रहे हैं। आप सोचते हैं कब तक यह दण्ड भोगेगा? जब तक इसका सम्प्रदाय चलेगा तब तक इसके शिष्य यहां आकर इससे बदला लेंगे। ढोंगी गुरु अपने आप डूबता है। अपने शिष्यों को भी डुबा देता है।
पांचवां दृश्य प्रकट हुआ श्वेताम्बरी हैं। अर्द्धवृद्ध काया है। इन्हें औरतें नोच रही हैं। मार रही है। तप्त बालू इनके ऊपर फेंक रही है। कुछ पुरुष भी खौलते तेल फेंक रहे हैं। कुछ इनके गीत इन्हें ही सुनाकर इन पर थूक रही हैं। ये बार-बार दया, क्षमा का भीख मांग रहे हैं। भूखे-प्यासे मूर्च्छित होकर गिर जाते हैं। फिर होश आने पर मार सहने को विवश हैं। अब भविष्य में ऐसी गलती कभी नहीं करने का कसम खाते हैं।
यमराज कहते हैं स्वामी जी ये आपके ही पृथ्वी के व्यापारी हैं। मणी स्वर्ण का व्यापार करते करते धर्म का व्यापारी बन गया। ये लोग स्वयं किसी गुरु के शरण में नहीं गये। अपने ब्रह्मा शिव के अवतार बन गये। पृथ्वी पर औरतों के मध्य आपने को कृष्ण माने । औरतों को गोपिया अपने डूबे इन्हें भी डुबाये हैं। पृथ्वी पर अभी भी इनका प्रचार है। ये ही हैं अवतारी भगवान जो पृथ्वी पर सतयुग ला रहे हैं। जब तक इनका सम्प्रदाय रहेगा इन्हें दण्ड मिलता रहेगा।
छठा दृश्य सामने आया, गेरुआ वस्त्रधारी हैं। इन्हें गेरुआ वस्त्र वाले ही विभिन्न प्रकार के कष्ट दे रहे हैं। हवन कुण्ड बनाकर इन्हें ही उसमें बैठा दिया है। इसके साथ दूसरे तरफ श्वेत वस्त्रधारी हैं इन्हें भी हवनकुण्ड में बैठाया गया है। अग्नि जल रही है। इन्हीं पर हवन हो रहा है। ये चिल्ला रहे हैं। कोई रक्षा नहीं कर रहा है। जो आ रहा है। कुछ लकड़ी एवं हवन सामान डाल रहा है। यह दृश्य भी समाप्त हुआ। यमराज बोले, स्वामीजी परमात्मा को यह कह कर नकार दिये हैं कि वेदों का गलत अर्थ किया है। गायत्री का गलत अर्थ किया है। अपना सम्प्रदाय खड़ा कर झूठा जना आंदोलन खड़ा किया है। कर्मकाण्ड के कारण परम पिता को भुला दिया है। ये स्वयं भी अवतार है। इनका भी पृथ्वी पर है।
सप्तम दृष्य उभरा-लम्बे, गौर श्वेत व्यक्ति हैं। इन्हें गर्म तेल में डाला गया है। सैकड़ों व्यक्ति इन्हें इट्टे पत्थर से मार रहे हैं। मार से बचने के लिए ये तेल मे डूब जाते हैं। जिससे सारा मुंह जल जाता है। बार-बार दया की भीख मांगते हैं।
यह दृश्य समाप्त होता है, यम राज बोलते हैं स्वामी जी ये आपके ही पृथ्वी के पश्चिम देश के दार्शनिक है। अपने को अवतार कह कर ये भी सम्प्रदाय चलाते है।
इस तरह सैकड़ों दृश्य दिखाये जिसमें विभिन्न प्रकार के लोगों को विभिन्न प्रकार दण्ड दिया जा रहा था। मैंने कहा कि पृथ्वी पर सही अवतार का कैसे पता चलेगा।
यमराज ने कहा, स्वामीजी अवतार, सद्गुरु को तो शिष्य ही नहीं मिलते हैं। चूंकि न वे लालच देते हैं न ही आश्वासन देते हैं। वे पृथ्वी से आनाचार, भ्रष्टाचार मिटाने का शंखनाद करते हैं। सद्विप्र की स्थापना करते हैं। कौन विप्र बनेगा। कौन हनुमान बनना चाहता है। सभी रावण बन कर ऐश करना चाहते हैं। सभी इसी शरीर से पृथ्वी का सभी सुख अपने भोगना चाहते हैं। सारी सुख-सुविधा का स्वयं हो केंद्र बन जाना चाहता है। झूठा भ्रामक मिथ्या ज्यादा प्रचारित होता है। चूंकि उसमें इन्द्रिय सुख भोग वासना की खुली छूट रहती है। भविष्य का झूठा आश्वासन होता है। अगले जन्म में तुम देवता बनेगा। मैं नारायण बनूंगा। इस पृथ्वी पर ऐसे सतयुग लाऊंगा। अभी तो अकर्मण्य है। झूठा आश्वासन दे रहा है। अपने समेत शिष्य को नरकगामी बन रहा है। सत्य कहने पर मुंह मोड़ लेता है।
आप ही स्वामीजी गये हैं। सदविप्र समाज की स्थापना किये हैं। सारे तथाकथित सम्प्रदाय वादियों को धर्मवादियों को चाहिए था कि आपके शरण में हथियार डाल दे। परंतु उनका अहंकार सातवें आसमान में हैं। वे स्वयं भटके हैं। अतृप्त हैं। धर्म रूपी दुकान में अनवरत दूसरे को फंसा रहे हैं।
मैं राजपुरुष, धर्मगुरु एवं विभिन्न तरह के लोगों का कष्ट देख कर दुखी हो गया। कुछ देर सोचते रहा यदि इस कटु सत्य को पृथ्वी पर कहूं तो कौन मानेगा। मैं अधिकांश धर्म गुरु एवं राजनेता को पहचानता भी हूं। परंतु पृथ्वी पर कहूं कि इनकी गति नरक में है तब इनके सम्पद्राय के लोग मेरी दुर्दशा कर देंगे। क्या कबीर साहब इन्हीं संदेशों में कहे हैं। दुनिया अजब दिवानी, मोर कहे एक न माने। आगे भी कहे हैं-
सच्चे का कोई ग्राहक नाही. झूठे जगत पसीजें जी कहत कबीर सुनो भाई साधो, इन अंधों को क्या दीजै जी ॥
यमराज ने कहा क्या सोच रहे हैं स्वामी जी। यह सत्य है। कबीर साहब उस परम पुरुष को भजन के लिए प्रचारित किये। उनकी कोई नहीं सुना। उन्हें कहना पड़ा--- जो मिला सो गुरु मिला, शिष्य मिला नहीं कोय। यही स्थिति आपके साथ भी है। सदा से यही है। इसलिए नरक का विस्तार हो रहा है। पृथ्वी पर ही नरक सदृश्य दिया जा रहा है। जो वहां बच जाता है, उसे यहां दिया जाता है। फिर उनका जन्म उन्हीं की तरह के योनि में हो रहा है।
पृथ्वी पर सदा से रूढ़िवादी रहे हैं। जब कोई सद्गुरु पीछे के सारी रूढ़ि परम्परा को तोड़ देता है। तब उसे मार देते हैं। जब वही पृथ्वी पर से निराश चला आता है। तब उसके नाम पर विभिन्न प्रकार के पुस्तक बनाकर उसे मानते हैं। अब उसके नाम पर लकीर के फकीर बने हैं। जबकि वह गुरु उस समय के लिये उपयुक्त बिंदुओं पर प्रकाश डाला उस समय स्थान के लिए उपयुक्त पद्धति बताया। वह समय चला गया। स्थान की सीमा समाप्त हो गई। परंतु वह काजी, मुल्ला, पादरी, पंडित उसे ही सत्य मानकर वहीं बैठा है। ये सदा से रुद्र होते हैं। जैसे वर्तमान के नदी सरोवर, का प्रयोग होता है। उसी तरह वर्तमान में सद्गुरु को पहचानने की पारखी आंखें होनी चाहिए। परंतु ये आदि हो गये हैं। घिसीपिटी मान्यताओं को मानने के लिए। ये अपने जन्म जीवन के साथ पुश्त दर पुश्त का। जीवन बर्बाद कर रहे हैं। इन्हीं के भ्रम से इन काल पुरुषों की दुकान खड़ी है। ये पाखण्डी-परम्परावादी कसम खा लिये हैं कि पृथ्वी को स्वर्ग नहीं बनने देंगे। चूंकि इनकी दुकानें तो उसी परम्परा की पुस्तक पर घिसीपिटी लीक पर खड़ी है।
क्रमशः....