शीत ऋतु मन झूम गाये

शीत ऋतु मन झूम गाये

शीत ऋतु मन झूम गाये 

सनन-सन सन पवन डोले
संग मेघों को उड़ा कर
शीत ऋतु मन झूम गाएँ
ओस बूंदों में नहाकर।

शीत ऋतु मादक सुहानी 
चाँदनी चंचल जवानी
यामिनी का घुप अँधेरा 
नेह जगता बन कहानी 
रात बीती भोर जागे 
संदली सपने जगाकर
शीत ऋतु -----

अरुण किरणें भोर तारे 
आस भरते नयन कारे
दस दिशाएँ दें निमंत्रण 
जय करें अभिलाष सारे
तान से मकरंद चहके 
गीत अभिनंदन सुनाकर 
शीत ऋतु ----

गुनगुनाती धूप छाया
प्राण रस संचार करती
नेह का शीतल प्रसारण
गीत गाती साँझ भरती
रंग स्वप्निल भर दृगों में 
रत्न जड़ता है सुधाकर
शीत ऋतु ---

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 सार जीवन का समाया

ओंकारा स्वर उचारे
योग काया नृत्य नर्तन 
सार जीवन का समाया
दंभ  का सुन्दर  विसर्जन।

आत्मा-परमात्मा का 
मेल है आनंद प्यारा
भेद रह जाता न कोई
सात सुर संगीत धारा
कर भलाई दे सहारा
साधना नित भाव-अर्चन
ओंकारा स्वर --

फूल खिल आलोक फैले 
सुर सजा सरगम बिखेरे
जीव जड़ता ही मिटे हैं
जाल शब्दों के बुने रे
शब्द गुंजित गीत माला
स्वर सुगंधितमय समर्पण 
ओंकारा स्वर 

पथिक मन बुनता किनारा
राह ढूँढ़े नित विचारा
मात करती है कृपा जब
गीत गूँजे गाँव सारा
योग कर लो रोग भागे 
मंद-मति आलस्य अर्पण 
ओंकारा स्वर ---

 डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़