साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज जी की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

प्रदीप नायक प्रदेश अध्यक्ष सदगुरु कबीर सेना छत्तीसगढ़

साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज जी की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

 "आपका विरोध अत्यधिक होगा। ढोंगी, साधु, तांत्रिक, मांत्रिक आपसे घबरा जाएंगे। आपके साथ रहने वाले स्वार्थी शिष्य भी विरोध करेंगे। जो नि:स्वार्थी है। तपस्वी है। देवशरीरी है। जन्मो जन्म के पुण्य स्वरूप परोपकार से करुणावश शरीर धारण किया है। वह एक क्षण में वीर विरक्त ज्ञानी हनुमान की तरह आपके लिए न्योछावर कर देंगे। शिष्य तो वही है, जो गुरु के एक निर्देश पर जलते हुए अग्नि कुंड में छलांग लगा जाए। जो छलांग लगाने से पहले अपना हित-अहित सोचता है, वह शिष्य नहीं अपितु स्वार्थी है ‌। राम में, कृष्ण में, हनुमान में, मेरे कबीर में वही गुण था। जिससे पृथ्वी वासी इनकी पूजा करते हैं।"
     जैसे सूर्य के निकलते ही आकाश में स्थित सारे तारे गण अपने तेज को मानो सूर्य को अर्पित कर देते हैं। उसी तरह स्वामी जी! समय आते ही, विश्व के सारे धार्मिक ठेकेदार स्वत: अपनी उर्जा को कार्यप्रणाली को आप के निर्देशन में सौंप देंगे। उनका अहंकार गिरना अति कठिन है। लेकिन असंभव नहीं है। आप अपना कार्य करें। उनकी तरफ न देखें न ही छेड़ें। इसमें भी ऊर्जा का निरर्थक क्षय होगा।

भगवान रामानंद जी हमारे सिर पर हाथ फेरते हुए अपने सिंहासन पर विराजमान हो गए। मुझे अपने नजदीक खींच कर बैठा लिए। उनका प्रेम रस प्रतीत हो रहा था, जैसे बहुत दिन से बिछुड़ा संबंधी उन्हें प्राप्त हो गया हो। वह एक क्षण के लिए भी दूर करने को तैयार नहीं थे।
   पुनः चौक कर उठ गए। उनके मुंह से निकला क्षमा करेंगे सभापति सम्राट श्री देवोदासजी। मैं प्रेमवश शिष्टाचार भी भूल गया। मेरी ममतामयी मां गौरी, प्रेम की मूर्ति मां गंगा के चरणो में मेरा कोटीश: नमन है। भगवान परशुराम, सभापति जी एवं सभा में उपस्थिति दिव्य शरीर धारी सभी श्रेष्ठ जनों को मेरा बार-बार नमन है। आपके सभा संचालन में मेरे चलते बाधा उपस्थिति हो गई, इसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं। इतना कह कर बैठ गए।
      सभा में गहन मौनता छा गई। सभापति जी ने उठकर कहा---हे स्वामी रामानंद जी! यह सभा स्वामी कृष्णायनजी के सम्मान में बुलाई गई थी। आप एवं भगवान परशुराम ने उपस्थित होकर इसकी शोभा एवं गरिमा प्रदान की है। आप दोनों शुभ मंगल के मूर्ति हैं। आपसे सभा के कार्यवाही में बाधा कैसे उत्पन्न हो सकती है। आपसे निवेदन है कि आपके आशीर्वचन से सभा की कार्यवाही को स्थगित करेंगे।
       भगवान रामानंद जी अपने स्थान पर खड़े हो गए। ऐसा जान पड़ता था कि सहरसा पूर्ण प्रकाश खंड सूर्य ही खड़ा हो गया है। सूर्य में ताप होता है। ऊष्मा होती है। उन पर ज्यादा देर तक आंखें नहीं रुकती है। इनके चेहरे पर तेज था। आकर्षण था। शांति थी। प्रेम का केंद्र था। अजीब मनमोहक शक्ति थी। मैं अपलक उनकी तरफ देखे जा रहा था। वे भी प्रेम चितवन मेरी तरफ करते रहते थे।


      वे प्रसन्न मुद्रा में बोले---मेरे परम पूज्य, परम श्रद्धेय माता श्री, सभापति जी, भगवान परशुराम जी एवं प्रिय स्वामी कृष्णायनजी तथा श्रद्धेय उपस्थित गणपति और दिव्य शरीरधारी तपस्वीगण, देवतादि आज अत्यंत पावन दिन है। युगो युगो के अंतराल में ऐसा महामानव शरीर ग्रहण कर पृथ्वी पर आता है। ये आत्माएं किसी का स्वागत करें। यह अपने-आप में आश्चर्य है। आज मैं अति प्रसन्न हूं। उस प्रसन्नता को व्यक्त करने में असमर्थ हूं।
       यह क्षेत्र अत्यंत पावन है। काशी भगवान भूतनाथ के त्रिशूल पर है। अभी सांसारिक मानव स्कूल काशी को ही देखते हैं। सूक्ष्म काशी जिसको सम्राट देवोदास ने बताया था। आप स्वयं विष्णु के प्रतिरूप हैं। वह काशी अभी भी पावन है। जिसमें भगवान भूतनाथ आज भी अपने गणों, पार्षदों के साथ विराजमान है। जैसे संत महात्मा भी सानंद रह रहे हैं। जिसका श्रेय आपको ही है। आप जैसा उदार-त्यागी सम्राट खोजना कठिन ही नहीं असंभव है। आप चिरकाल से काशी दान देकर स्वयं इस पावन धरती पर झोपड़ी में विराजमान है। आपकी दयालुता, धर्म परायणता देखकर समग्र मातृ सदन अपने पुत्र के वात्सल्य में इसी तरफ आ गए।
      भगवती मां अंजनी जी यहीं आकर निवास की थी। जिसकी सेवा में वीर हनुमान जी स्वयं आए तथा इसके ईशान कोण पर विराजमान हो गए। जब आपकी कृपा से मां अंजनी का ध्यान टूटा तो अपने पुत्र हनुमान को छाती से लगा ली। अपनी प्रेमाश्रु से पुत्र हनुमान को नहला दी। उसी प्रेम के वश में आकर हनुमान जी एक सूक्ष्म शरीर से यहां विराजते हैं।
        आपने ही उनका नामकरण किया था----"संकट मोचन आञ्जनेश"। स्वामी जी अंजनी को अपनी बहन मानते हैं एवं हनुमान जी को अपना भांजा, जो बिल्कुल सत्य है। वे अपने भगीना की मूर्ति एक दिन अवश्य स्थापित करेंगे। जो भी उनका पांच मंगलवार दर्शन करेगा। श्रद्धा सुमन अर्पित कर "ओम नमो भगवते आंजनाय महाबलाय स्वाहा"मंत्र का जाप करेगा, उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ति होगी।
     यह क्षेत्र अत्यंत पावन मातृ क्षेत्र है‌। अतएव स्वामी जी से निवेदन है कि आप यही विराजे जिससे हम लोगों को भी आपका सानिध्य सहज सुलभ हो सके। आपके नेतृत्व में तथा हम लोगों के सामूहिक आशीर्वचन से यह क्षेत्र अष्ट सिद्धि नव निधि से परिपूर्ण हो जाएगा। इस पृथ्वी का पवित्रतम भाग है----यह क्षेत्र। देखें मां गंगा वात्सल्य वश इसे अपने अंक में भर ली है। इसे तीन तरफ से घेर ली है। जैसे कोई मां अपने लघु शिशु को अंक में भरकर छाती से चिपका लेती है। मां की विशेष कृपा है। काशी तो मां के पीठ पर है। आप स्वयं देख लें।


       मैं नम्र भाषा में पूछा, गुरुदेव! जो कुछ सुन रहा हूं, देख रहा हूं, क्या वह सभी सत्य है? या मेरा दिवास्वप्न।
       सभी मेरे तरफ आश्चर्य मुद्रा में देखने लगे। संभवत: वे सोचते होंगे यह स्वामी जी साधारण मानव की तरह तर्क कर रहा है। भगवान रामानंद जी मेरे मस्तक पर हाथ फेरते हुए मंद-मंद मुस्कान के साथ बोले---यह प्रश्न आपका नहीं है। यह संसार के द्वारा आप पर लादा गया प्रश्न है। यह वैसे ही सत्य है जैसे अपने चर्मचक्षुओं द्वारा जगत को देखते हैं। यह जगत पार्थिव शरीरगत है। वह सत्य सा लगता है। यह जगत सूक्ष्म, कारण, आत्म, ब्रह्म शरीर का है। स्थूल से ज्यादा सत्य है। बर्फ स्थूल है। उसका अपना आकार है। बर्फ जैसे ही द्रव में व्याप्त है। उसका आकार एवं रंग विलीन हो जाता है। चर्मचक्षु से दृश्य है। द्रव (पानी) जैसे ही वाष्प बनता है, उसका आकार, प्रकार, रूप, रंग सभी कुछ दिखाई पड़ना बंद हो जाता है। वह पात्र भी छोड़ देता है। ऊपर आकाश की तरफ यात्रा करता है। फिर कालांतर में परिस्थितिवश वह पानी के रूप में जमीन पर बरसता है। बर्फ भी बनता है। 

  क्रमशः......…..