प्रियंका गांधी को छोटे भाई से बंधी आस, वरुण गांधी बने भाजपा के गले की फांस !

गांधी परिवार का बिखरा कुनबा अब एक बार फिर से सवरने के कगार पर है और इसके सूत्रधार परिवार के कुछ करीबी बने हुए हैं. भले ही यूपी में कांग्रेस का जनाधार घटा हो, लेकिन पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की बढ़ी सक्रियता और पीलीभीत से भाजपा सांसद व प्रियंका के छोटे भाई वरुण गांधी का योगी सरकार के खिलाफ जारी ट्विटर वार अब सूबे की सत्ताधारी भाजपा के लिए गले की फांस बन गया है.

प्रियंका गांधी को छोटे भाई से बंधी आस, वरुण गांधी बने भाजपा के गले की फांस !

पहले किसान आंदोलन और फिर लखीमपुर खीरी वाक्या के बाद से ही पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी   सूबे की योगी सरकार के खिलाफ  सख्त रूख अख्तियार किए हुए हैं. आए दिन अपने ट्विटर अकाउंट से किसानों के समर्थन में अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं. वहीं, कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का अपने छोटे भाई के प्रति स्नेह और विश्वास अचानक से बढ़ गया है. ऐसे में अब प्रियंका अपने बिखरे कुनबे को एक करने की कोशिश कर रही हैं.

गांधी परिवार के करीबियों की मानें तो खुद प्रियंका गांधी चाहती हैं कि उनका भाई वरुण अब सारे गिले-शिकवे भुलाकर घर वापसी करें. उन्हें उम्मीद है कि अगर वरुण घर वापसी करते हैं तो फिर परिवार के साथ ही कांग्रेस पार्टी भी मजबूत होगी. इधर, कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं है, क्योंकि पिछले कुछ माह से कांग्रेस पार्टी में उठा-पटक की स्थिति बनी हुई है.

इस बीच सोशल मीडिया पर सांसद वरुण गांधी का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है. जिसमें वे एक किसान मंडी अधिकारी को पहले तो लताड़ लगाते नजर आए और फिर उन्होंने कहा कि वे अब सरकार के सामने हाथ-पैर नहीं जोड़ेंगे, बल्कि सीधे कोर्ट का रूख करेंगे.

ऐसे में अब भाजपा को उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार से दोहरी चुनौती मिल रही है. एक ओर सूबे की प्रभारी व कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा हैं, जो अपने आक्रामक प्रचार और महिला कार्ड के जरिए भाजपा की मुश्किलें बढ़ाने का काम कर रही हैं. वहीं, दूसरी ओर वरुण गांधी भी सुनियोजित तरीके से भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.

इस बीच लंबे अरसे से गांधी परिवार के सभी वारिसों को एकजुट करने की कोशिश में लगे कुछ सूत्रधारों की सक्रियता फिर से बढ़ गई है. हालांकि, राहुल और प्रियंका से वरुण को साथ लेकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोलने की बात ऐसे लोग कर रहे हैं, जिनका सीधे तौर पर सियासत से कोई लेना-देना नहीं है. सूत्रों की मानें तो जिस प्रकार से कांग्रेस प्रवक्ता न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर खुलकर वरुण गांधी की तारीफ कर रहे हैं, उससे तो यही स्पष्ट होता है कि अब वरुण भी घर वापसी का मन बना लिए हैं.

इस कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि वरुण गांधी के पास जमीर है. इसलिए वे किसानों के हक की बात कर रहे हैं, जबकि दूसरे भाजपा नेताओं के पास जमीर नहीं है. इसी तरह एक अन्य प्रवक्ता ने ट्वीटर पर वरुण गांधी की जमकर तारीफ की व लिखा कि मोदी और शाह को कोई भी गांधी बर्दाश्त नहीं है. भले ही वह उनकी ही पार्टी में क्यों न हो.

इधर, प्रियंका गांधी के सलाहकार आचार्य प्रमोद कृष्णम तो लगातार वरुण गांधी की तारीफ कर रहे हैं. हाल ही उन्होंने वरुण के ट्वीट पर ही लिखा कि कोई गांधी ही ऐसा कर सकता है. उन्होंने किसानों को लेकर किए गए वरुण गांधी के हर ट्वीट और बयान को सराहा और उसका स्वागत किया है. कांग्रेस के कुछ नेताओं ने फोन करके भी वरुण को उनके इन तेवरों के लिए बधाई दी है.

किसानों के पक्ष में वरुण के उतरने से परिवार के इस तीसरे गांधी की जनप्रियता में इजाफा हुआ है. वहीं, सियासी गलियारों में इस बात पर भी चर्चाएं होने लगी है कि क्या अब वरुण कमल को छोड़ पंजे के साथ खड़े होंगे. खैर, अगर ऐसा होता है तो फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को इंदिरा गांधी की विरासत से सियासी जंग में जूझना पड़ेगा. हालांकि, अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन गांधी परिवार के करीबियों ने परिवार को एकजुट करने की कोशिशें तेज कर दी हैं.

वहीं, वरुण के तेवर केंद्र और सूबे की योगी सरकार को लेकर लगातार सख्त हो रहे हैं. दरअसल, इसकी शुरुआत वरुण के किसान आंदोलन के समर्थन से हुई थी और तब उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गन्ने का समर्थन मूल्य चार सौ रुपये करने की मांग करते हुए पत्र लिखा था.

इसके बाद जब योगी सरकार ने गन्ने के मूल्य में 25 रुपये की बढ़ोतरी की तो वरुण गांधी ने मुख्यमंत्री को धन्यवाद देते हुए 50 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस गन्ना किसानों को देने का अनुरोध करते हुए दूसरा पत्र लिखा था. हालांकि, इसके बाद लखीमपुर हिंसाकांड का वीडियो ट्वीट कर वरुण ने योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ाने का काम किया.

जाहिर तौर पर वरुण गांधी के ये कदम भाजपा को असहज करने वाले रहे और इसी का नतीजा रहा कि वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति से बाहर कर दिया गया. खैर, वरुण गांधी के इन बदले तेवरों ने जहां भाजपा नेतृत्व को असहज स्थिति में लाकर खड़ा किया है. वहीं, भाजपा तमाम लाचारियों के बीच उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का कोई सीधा कारण नहीं ढूंढ सकी है.

इधर, भाजपा के बाहर कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों में भी वरुण के प्रति आकर्षण और सद्भाव बढ़ रहा है. कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने उनकी तारीफ करते हुए उनके जमीर की तारीफ की और इसे लेकर भाजपा पर तीखा हमला बोला. वहीं उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव चिराग पासवान समेत कई विपक्षी नेताओं ने भी उनका हौसला बढ़ाया है.

वरुण के इन तेवरों ने एक बार फिर उन लोगों को सक्रिय कर दिया है, जो सालों से गांधी परिवार की इन बिखरी कड़ियों को मिलाने की कोशिश में जुटे हैं. हालांकि, 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले भी यह कोशिश हुई थी, जब वरुण गांधी और प्रियंका गांधी के बीच लगातार संवाद हुआ था. लेकिन यह कोशिश कामयाब नहीं हो सकी.

इसके बाद 2019 के आम चुनाव से पहले वरुण गांधी की कांग्रेस में वापसी के लिए गांधी परिवार के कुछ पुराने वफादारों ने जोर लगाया था. साथ ही इससे राहुल गांधी और सोनिया गांधी को भी अवगत कराया था. लेकिन उस समय यह सवाल उठने लगा था कि क्या वरुण गांधी के कांग्रेस में जाने के बाद भी मेनका गांधी भाजपा में ही रहेंगी या वो भी कांग्रेस में चली जाएंगी और कांग्रेस में गईं भी तो वहां उनकी स्थिति क्या होगी. लेकिन अंततः वरुण भाजपा में ही बने रहे और इसके साथ ही सभी सवालों व कयासों पर भी विराम लग गया था. अब वरुण ने अपनी राह अलग करने का मानों मन बना लिया है और लगातार अपनी ही पार्टी के खिलाफ बयानबाजी कर विपक्ष को घेरने का मौका दे रहे हैं और वो भी तब, जब सूबे में विधानसभा चुनाव सिर पर है.