गीत

डॉ मीता अग्रवाल मधुर

गीत


कला प्रवीण हे गणनायक
रीद्धि-सीद्धि के दाता। 
जनक आपके शंकर हरहर, 
संग गवरजा माता।। 

लंबोदर  गजानन स्वामी
लडुवन  दूर्वा पाते, 
विध्न विनायक संकट हर्ता
गौरा सुत कहलाते, 
मंगलकारी रुप सुहावन
प्रथम पूज्य विधाता। 

मूषक वाहन सूप कर्ण तुम
सब देवों के देवा
काज करें पहले सुमिरन कर
पाते हर फल मेवा
मात-पिता की कर परिक्रमा
ज्ञानी-बुद्धि प्रदाता। 

कुमति टारें सुमति सारें
एकदंत महाराज
सब कष्टों के हे दुख हर्ता
विराजित हर घर आज
जय-जय -जय-जयकार करें जन
वंदन मन न अघाता।