क्या आपको पता है फेसबुक का संस्थापक एक भारतीय था, मामला कोर्ट पहुंचा तब हुआ खुलासा

क्या आपको पता है फेसबुक का संस्थापक एक भारतीय था, मामला कोर्ट पहुंचा तब हुआ खुलासा

नई दिल्ली। क्या आप को पता है फेसबुक का संस्थापक एक भारतीय था। जिसका नाम है दिव्य नरेंद्र। इसका खुलासा तब हुआ जब मामला न्यायालय पहुंचा। वर्ष 2008 में जुकरबर्ग ने उनसे समझौता किया. माना जाता है इस समझौते में उन्हें 650 लाख डॉलर की रकम दी.दिव्य नरेंद्र वो शख्स हैं, जिन्हें फेसबुक बनाया तो सही लेकिन उन्हें कभी उसका श्रेय नहीं मिला. उन्होंने अपने दो अन्य साथियों के साथ वो तकनीक विकसित की थी, जिसे आज हम फेसबुक के रूप में जानते हैं. पर मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक को खड़ा किया. नरेंद्र पहले शख्स थे, जिन्होंने जुकरबर्ग के खिलाफ पहला मुकदमा ठोका था. ये मुकदमा विश्वासघात का था. अमेरिकी कोर्ट के फैसले से ये तय हो गया कि दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक का आइडिया दिव्य नरेंद्र का थानरेंद्र का पूरा नाम दिव्य नरेंद्र है. वो भारत से अमेरिका गए डॉक्टर दंपत्ति के बड़े बेटे हैं. नरेंद्र ने हार्वर्ड में पढाई की. अब अपनी कंपनी चलाते हैं, जिसका नाम समजीरो है. निवेश संबंधी ये बड़ी वो हार्वर्ड के क्लासमेट अलाप महादेविया के साथ चलाते हैं. वो हार्वर्ड कनेक्शन (बाद में नाम कनेक्टयू) के भी सहसंस्थापक थे. उसे उन्होंने कैमरुन विंकलेवोस और टेलर विंकलेवोस के साथ मिलकर बनाई थी.

दिव्य ने हार्वर्ड के अपने दो साथियों के साथ हार्वर्डकनेक्ट सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट 21 मई 2004 में लांच की. बाद में इसका नाम बदलकर कनेक्टयू कर दिया. प्रोजेक्ट की शुरुआत दिसंबर 2002 में की गई. इसका पूरा फारमेट और अवधारणा वही है, जिस पर फेसबुक शुरू हुई. ये वेबसाइट लांच हुई. हार्वर्ड कम्युनिटी के तौर पर काम शुरू किया. फिर बंद हो गई.

दिव्य न्यूयार्क के ब्रांक्स में पैदा हुए. उनके माता पिता दोनों भारत से आए थे. दोनों डॉक्टर थे. दोनों को न्यूयॉर्क में प्यार हो गया. उन्होंने शादी कर ली. नरेंद्र शुरू में पढने में तेज थे. 1984 में वो पैदा हुए और वर्ष 2000 में उन्होंने हार्वर्ड में दाखिला लिया. 2004 में वो अप्लाइड मैथमेटिक्स में ग्रेजुएट हुए. उसके बाद उन्होंने एमबीए और कानून की भी इसमें संजय मवींकुर्वे पहले ऐसे प्रोग्रामर थे, जिनसे हार्वर्ड कनेक्शन बनाने को कहा गया. संजय ने इस पर काम करना शुरू किया लेकिन वर्ष 2003 में इस प्रोजेक्ट को छोड़ दिया. वो गूगल चले गए. संजय के जाने के बाद विंकलेवोस और नरेंद्र ने हार्वर्ड के स्टूडेंट और अपने दोस्त प्रोग्रामर विक्टर गाओ को साथ काम करने का प्रस्ताव दिया. उन्होंने कहा कि वो इस प्रोजेक्ट का फुल पार्टनर बनने की बजाए पैसे पर काम करना चाहेंगे. उसे काम के बदले उन्हें 400 डॉलर दिए गए. उन्होंने वेबसाइट कोडिंग पर काम किया. फिर व्यक्तिगत कारणों से खुद को अलग कर लिया.
नवंबर 2003 में विक्टर के रिफरेंस पर विंकलेवोस और नरेंद्र ने मार्क जुकरबर्ग को एप्रोच किया कि वो उनकी टीम को ज्वाइन करे. हालांकि इससे पहले ही नरेंद्र और विंकलेवोस इस पर काफी काम कर चुके थे. नरेंद्र का कहना है कि कुछ दिनों बाद हमने काफी हद तक वो वेबसाइट डेवलप कर ली. हमें मालूम था कि जैसे ही हम उसे कैंपस में लोगों को दिखाएंगे, वो लोगों के बीच हलचल पैदा करेगी. जुकरबर्ग ने जब हार्वर्डकनेक्शन टीम से बात की तो टीम को वो काफी उत्साही लगे. उन्हें वेबसाइट के बारे में बताया गया. ये बताया कि वो उसका किस तरह विस्तार करेंगे. कैसे उसे दूसरे स्कूलों और अन्य कैंपस तक ले जाएंगे. लेकिन ये सबकुछ गोपनीय था लेकिन मीटिंग में बताना जरूरी था.मौखिक बातचीत के जरिए ही जुकरबर्ग उनके पार्टनर बन गए . उन्हें प्राइवेट सर्वर लोकेशन और पासवर्ड के बारे में बताया गया ताकि वेबसाइट का बचा काम और कोडिंग पूरी की जा सके. माना गया कि वो जल्द ही प्रोग्रामिंग के काम को पूरा कर देंगे और वेबसाइट लांच कर दी जाएगी.इसके कुछ ही दिन बाद जुकरबर्ग ने कैमरुन विंकलेवोस को ईमेल भेजा, इसमें कहा गया कि उन्हें नहीं लगता कि प्रोजेक्ट को पूरा करना कोई मुश्किल होगा. मैने वो सारी चीजें पढ़ ली हैं, जो मुझको भेजी गई हैं. इन्हें लागू करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. अगले दिन जुकरबर्ग ने एक और ईमेल भेजा, मैने सब कर लिया है और वेबसाइट जल्दी ही शुरू हो जाएगी. लेकिन इसके बाद जुकरबर्ग धोखा देने लगे.
फिर हालात ऐसे बने कि जुकरबर्ग ने मतभेद पैदा किए और अलग हो गए. इसी बीच उन्होंने फेसबुक डॉट कॉम के नाम से चार फरवरी 2004 को नई साइट लांच कर दी. इसमें सबकुछ वही था, जो हार्वर्ड कनेक्ट के लिए डेवलप किया जा रहा ता. ये सोशल नेटवर्क साइट भी हार्वर्ड स्टूडेंट्स के लिए थी, जिसे बाद में देश के अन्य स्कूलों तक विस्तार देना था. नरेंद्र और विंकलेवोस को इसका पता देर से लगा. दिव्य और उनके सहयोगियों की जुकरबर्ग से तीखी नोकझोंक हुई. यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट ने मामले में हस्तक्षेप किया. दिव्य को कोर्ट जाने की सलाह दी.
नरेंद्र और विंकलेवोस कोर्ट में पहुंचे. वर्ष 2008 में जुकरबर्ग ने उनसे समझौता किया. माना जाता है इस समझौते में उन्हें 650 लाख डॉलर की रकम दी. हालांकि नरेंद्र इससे संतुष्ट नहीं थे. उनका तर्क था कि उस समय फेसबुक के शेयरों की जो बाजार में कीमत थी, उन्हें उसके हिसाब से हर्जाना नहीं दिया गया।