महामाया मंदिर का ये रहस्य जानकर होगी हैरानी

महामाया मंदिर का ये रहस्य जानकर होगी हैरानी

तालाबों की नगरी कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में देवी का एक ऐसा मंदिर है, जिसकी ख्याति विदेशों तक फैली हुई है. पुरानी बस्ती स्थित प्राचीनतम महामाया मंदिर को बेहद ही चमत्कारी मंदिर के रूप में माना जाता है. आज आपको इस मंदिर के एक ऐसे रहस्य के बारे में बताने जा रहा है, जिसके बारे में अब तक न तो राजधानी के लोगों को उस रहस्य के बारे में जानकारी है और न ही इस रस्म से वाकिफ है

राजधानी का एक ऐसा मंदिर, जहां ज्योति जलाने से पहले लेनी होती है माता की अनुमति

कुंवारी कन्या करती हैं दीप प्रज्ज्वलित

पुरानी बस्ती स्थित सिद्ध पीठ मां महामाया देवी के मंदिर में हर साल हजारों ज्योति जलाए जाते हैं. ज्योति जलाने से पहले एक रस्म अदायगी की जाती है. जानकारी के मुताबिक गोपनीय तरीके से होने वाले इस रस्म में 10 वर्षीय या इससे कम उम्र की कन्या से दीप प्रज्ज्वलित करवाया जाता है. उसके बाद उसी ज्योति को लेकर देवी मां के गर्भगृह में जाकर उनसे अनुमति मांगी जाती है. अनुमति मिलने के बाद उसी दीपक से हजारों ज्योति जलाई जाती है. जानकारों की मानें तो यह रस्म सालों से चली आ रही है. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इस रस्म के बारे में राजधानी वासियों को जानकारी तक नहीं है.

ज्योति जलाने माता से ली जाती है अनुमति
मंदिर के ट्रस्टी पंडित विजय कुमार झा ने  बताया कि छत्तीसगढ़ की राजधानी में मां आदिशक्ति महामाया मंदिर में कार और चैत्र नवरात्रि में एक कुंवारी कन्या को देवी स्वरूपा का पूजा कराकर उसको निवेदन किया जाता है. कुंवारी कन्या के द्वारा सर्वप्रथम प्रथम ज्योति प्रज्ज्वलित की जाती है. उस प्रज्वलित ज्योति को लेकर के राज राजेश्वरी महामाया माता के पास जाकर के प्रार्थना किया जाता है कि हे माता, आपने कुंवारी कन्या स्वरूपा आ कर ज्योति को प्रज्ज्वलित की है. आप अनुमति दें तो बाकी जो हजारों जयोति है, उसको प्रज्ज्वलित किया जाए. माता पूरे नवरात्रि में रक्षा करना. यही भावना से माता से अनुमति लेकर कुंवर कन्या द्वारा प्रज्ज्वलित प्रथम ज्योति से हजारों ज्योति को प्रज्वलित किया जाता है. यह ऐतिहासिक परंपरा है. 4 से 5 पीढ़ी से चली आ रही है. कुछ लोग इसको नहीं जानते थे. आप लोगों के माध्यम से छत्तीसगढ़ की जनता को इसका दर्शन हो, उनको जानकारी हो, यही हमारी कामना है.

तांत्रिक विधि से बनाया मंदिर
यह मंदिर हयवंशी के राजा मोरध्वज ने खास तांत्रिक विधि से बनवाया था. हयवंश के राजा की माता कुलदेवी है. इसलिए राजवंश ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. तांत्रिक पद्धति से बने इस मंदिर में माता के दर्शन के लिए देश ही नहीं, विदेशों से भी भक्त पहुंचते हैं. नवरात्रि में सच्चे मन से मांगी गई मन्नत तत्काल पूरी हो जाती है.

मां के चरणों में पहुंचती है सूर्य की किरणें
वास्तु शास्त्र और तांत्रिक पद्धति से निर्मित मां महामाया की प्रतिमा पर सूर्य अस्त होने के समय सूर्य की किरणें माता के चरणों का स्पर्श करती हैं. तीनों रूप में विराजी मां महामाया देवी, मां महाकाली के स्वरूप में यहां विराजमान हैं. सामने मां सरस्वती के रूप में मां समलेश्वरी देवी विराजी हैं. महाकाली, मां सरस्वती, मां महालक्ष्मी तीनों स्वरूप में मां के दर्शन होते हैं. अंग्रेजी शासन काल में हयवंशी राजा मोरध्वज द्वारा बनाए गए मंदिर का कालांतर में भोसला राजवंशी सामंतों ने नव निर्माण करवाया. मुगल शासन काल और अंग्रेजी शासन काल में भी माता के चमत्कार से मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ती चली गई. अंग्रेजों ने भी मंदिर की विशेष देखरेख में योगदान दिया.