साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

प्रदीप नायक प्रदेश अध्यक्ष सदगुरु कबीर सेना छत्तीसगढ़

साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

स्वामी जी आपसे मैं सत्य उद्घाटित कर दिया। आप स्वयं देखें इस कलियुग में आप जैसा त्यागी विरक्त पुरुष इस पृथ्वी पर कोई नहीं है। आप इसे अपना बड़प्पन न समझे। आप स्वयं जगत् में देखें कि सभी माया के चक्कर में पड़ा है। आपको हम लोगों ने भरपूर माया दी। जो आप सोचते थे उसे तुरंत प्रदान किया गया। परंतु आप पर गुरु कृपा बरस रही थी। तभी आप एकाएक उस माया पर लात मारकर विश्व कल्याण हेतु सद् विप्र समाज की स्थापना कर आपने ऐसे माया को उसमें झोंक दिया। हम देवतागण भी अति अचंभित हुए। फिर आपको पारिवारिक कष्ट दिया गया। आपके बड़े पुत्र को जो मेधावी था। आपके बाद घर-परिवार को सम्भाल सकता था। उसे तुरंत बुला लिया गया। आपके शिष्यों ने मंत्रणा की फिर आपको गृह लौटने का सलाह दिया गया। उसमें हम लोगों की ही मंत्रणा थी। फिरभी आप चट्टान की तरह अडिग रहे। फिर आपके स्वार्थी सांसारिक शिष्यों में देवेन्द्र के माध्यम से आपके विरुद्ध किया गया। वे आपके शिकायत निंदा करने। लगे आप पर झूठा आरोप लगाकर आपको उद्देश्य से विचलित करने का भरपू प्रयास किए। आप जरा भी नहीं हिले। हां आपके निंदा का फलाफल उन शिष्यों को भी मिलेगा। चूंकि जो सूर्य पर मुंह ऊपर कर थूकेगा। वह थूक तो उसी पर पड़ेगा।

हम देवताओं का नेतृत्व काल निरंजन करते हैं। हम उन्हीं के निर्देशन पर कार्य करते हैं। आप गुरु भक्त हैं। आपकी विजय निश्चित है। इस सृष्टि में आपके इच्छा के विरुद्ध कोई भी देवी-देवता कुछ नहीं कर सकता है। परंतु आप संकल्पों- विकल्पों से ऊपर उठ गए हैं। तब देवतागण तो जरूर आपके खिलाफ प्रचार कर आपके अभियान को कमजोर करेंगे ही। जैसे ही आप अपने अभियान को गति दे देंगे, सभी देवता आपसे भयभीत होकर आपसे संबंधोन करेंगे। आपकी स्तुति करेंगे। यही सदा से सृष्टि का नियम है।

स्वामी जी प्रतिभा संपन्न है। आपसे दिव्य विद्या से स्वतः अवतरित हुई है। हो सकता है आपके स्वजनों से सरस्वती रूठ जाए। उन्हें विद्या से हाथ धोना पडे। यह देवताओं का अन्तिम अस्त्र है। यह भी हम जानते हैं कि यदि आप चाहें तो उनके सिर पर हाथ रखकर क्षणभर में प्रतिभा संपन्न बना सकते हैं।

अच्छा स्वामी जी! मैं देवजनित व्यवहार को आपके सामने उद्घाटित कर

दिया। हमारे यहां हर क्षण सृष्टि का कार्यकलाप आते रहता है। उचितानुचित दिशा

निर्देश भी जाता रहता है।

कृपया आप मेरे साथ आने का कष्ट करेंगे। मैं मौनतापूर्वक उनका अनुगमन किया। देखता हूं कि विभिन्न प्रकार का खाद्य पदार्थ अति स्वच्छतापूर्ण ढंग से रखा गया है। उन्होंने बैठने का इशारा किया। मैं चुप बैठ गया। कुछ देवियां हाथ में स्वर्ण पात्र में खाद्य एवं पेय पदार्थ लेकर उपस्थित हो गई। मैं सोच रहा था कि अपने गुरुदेव से सुना था कि ये देवता बहुत स्वार्थी होते हैं। उन्हें भी रोग ग्रस्त करने एवं शिष्यों में विद्रोह कराने में इनका हाथ था।

भगवान शंकर बोले-आप ठीक सोच रहे हैं स्वामी जी! आप कुछ आतिथ्य स्वीकार कर ले। मैंने कहा क्या इस आतिथ्य में भी छल हो सकता है। नहीं स्वामी जी नहीं। अभी मैं शिवालय में हूं। उसी निर्गुण निराकार के आराधना में हूं। यहां किसी तरह का छल नहीं है। हां यहां से हटकर जैसे ही अपने स्थान पर बैठूंगा। तब ये सत्य बातें आप से वही करूंगा। तब देवता की नीति से बातें करूंगा आप निश्चित रहें। आपको कोई देवता किसी तरह से अहित नहीं कर सकता।आपअपने अभियान पर निकले हैं। सभी देवता कुछ ही दिन में नतमस्तक हो जाएंगे। मैं खीर जैसा खाद्य पदार्थ स्वर्ण चम्मच से दो-चार चम्मच खाया। जिससे पूर्ण संतुष्टि हो गई। शीतल पेय एक गिलास पिया। जैसे अमृत ही पी लिया। शरीर का थकावट दूर हो गया। शरीर ऊर्जा से भर गया। दूसरी तरफ देव जनित चरित्र से दुःखी भी था। मानव के दुःख का कारण ये देवजनित पूजा एवं ढोंग ही तो है। जो पूरे मानव संस्कृति के कण-कण में लोग व्याप्त हो गया है। समय-समय पर सद्गुरु बिगुल फूंकते। कुछ ही सुनते अन्य अनसुना कर देते।

अच्छा भगवान शंकर अब आप अपने यहां के ऋषि-महर्षियों से मुझे मिलने का मौका प्रदान करे। स्वामी जी! आपको भैरव जी वहां ले जाएंगे। जो ऋषि जिस देवता के अधीन रहता है। वह उसी का गुणगान करता है। उसकी आत्मा उस देव के लिए बिक चुकी होती है। वह उन्हीं के गुण-गान में पुराण लिखता है। उसी के श्रेष्ठता का प्रचार करता है। हो सकता है आपके द्वारा व्यक्त आत्मदर्शन वे अनसुना कर दें। चूंकि उन्हें भय बैठा रहता है कि कहीं हमारा स्वामी अमुक देवता हमसे नाराज न हो जाए। ये ऋषि सुविधा भोगी हो जाते हैं। अच्छा आपका आत्म दर्शन मैं सुनूंगा।

आप सुनेंगे? किस रूप में सुनेंगे? स्वामी जी मेरा विभिन्न कार्य करने का विभिन्न रूप है। मैं हनुमान के रूप में भक्ति करता हूं। कपिल के रूप में सांख्य योग का दर्शन देता एवं सुनता हैं। परंतु आज आपके समक्ष इसी रूप में रहूंगा। चलिए मैं ही आपके साथ ऋषि आश्रम चलता हूं। अभी तक तो मैं ही आपसे कहा हूं। आज सुन तो लूं।

बाहर निकला। दूर-दूर तक मणि जटित सड़क। गगनचुंबी इमारत । कहीं कोई इमारत पाताल लोक के तरफ नीचे भी गई है। विभिन्न इमारतों से विभिन्न प्रकार की ज्योति निकल रही हैं। किसी से सूर्य, तो किसी से चन्द्रमा, किसी से कोहिनूर, किसी से स्फटिक का प्रकाश निकल रहा है। वे इमारत भी वैसे ही विभिन्न मणियों से निर्मित ज्ञात होती है।

सड़क के किनारे दूर-दूर तक बाग-बगीचे, ताल, तड़ाग, तालाब, झरने, नदियां, सागर-सा लहरा रही है। सभी अपने-अपने सुंदरता के चरम पर हैं। वृक्ष अपने फलों से लदे हैं। प्रत्येक वृक्ष समय को भूलकर फल-फूलों से लदे हैं। खूबसूरत लताएं फूलों से लदी हैं। सर्वत्र लुभावनी वसंत ऋतु ही नजर आ रही है। प्रत्येक गृह खाद्य एवं पेय पदार्थों से परिपूर्ण है। मानो सभी अपने तप से प्राप्त किए पुण्यों को भाग भोग रहे हैं।

क्रमशः......