प्रकृति धारा
डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग
तरंगित लहरों का आमंत्रण
करते मन से मंत्रणा
लहराते दुकूल में
सुरमई साँझ
आसमां की लालिमा- नीलिमा ,
लौटते पंछियों का कलरव निनाद,
चमकते सितारें
तरंग अमिट परछाई
मानों नदी के आंचल का
टका सितारा ।
तट पर बंधी नाव-नाविक
विहार जाने आतुर मन
तलाशती आँखें,
कैद करते चित्र ,
बढ़ते कदम,
तलाशते एक अनगढ़ साथ।
तरंगों-सा डोलता मन
देखना चाहता एक स्वप्न
जीना चाहता जिदंगी
प्रकृति की गोद में
झिलमिलाते तारों भरी
साँझ,
आतुरता से चल पडे़
पाँव
नौका विहार को
चाँद-तारों की छाँव
ओढ़ चुनरियांँ,
नदी,कूल, किनारा,
कल- कल छल-छल धारा
डोलती नाव संग सहारा
एक खुशनुमा साँझ
प्रकृति धारा।