मजदूर
Premdeep
मेहनतकश मजदूर हूं ,
रोटी के लिए तरसता हूं ।
अमीरों की शान के लिए,
टूट टूट कर बिखरता हूं ।
मेरी संवेदनाओं पर लेप,
पसीने से रोज छिड़कता हूं ।
कंधों पर मेरी हजारों बोझ,
सुबह से रात तब चलता हूं।
पेट की आग मिटाने के लिए,
यतन परिश्रम का करता हूं ।
जलता हूं कड़ी धूप में फिर भी,
औरों के लिए शीतलता हूं।