रायपुर में ‘हाउस चर्च’ पर रोक, ईसाई समुदाय बोला: संवैधानिक अधिकारों का हनन

ज़िला प्रशासन ने ईसाई समुदाय द्वारा घरों में आयोजित प्रार्थना सभाओं, जिन्हें ‘हाउस चर्च’ कहा जाता है, पर प्रतिबंध लगा दिया है। प्रशासन का कहना है कि यह कदम शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है, जबकि ईसाई समाज इसे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बता रहा है।
प्रशासन का तर्क
रायपुर पुलिस और ज़िला प्रशासन ने पादरियों व प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर स्पष्ट निर्देश दिए कि अब प्रार्थना केवल अधिकृत और रजिस्टर्ड चर्चों में ही की जाएगी। प्रशासन का दावा है कि हाउस चर्च की आड़ में धर्मांतरण गतिविधियों की शिकायतें मिल रही थीं, जिससे सामाजिक तनाव और विवाद बढ़ सकता था। प्रशासन ने यह भी कहा कि किसी भी धार्मिक या सामाजिक आयोजन के लिए अनुमति लेना अनिवार्य है, लेकिन इन सभाओं में नियमों का पालन नहीं हो रहा था।
ईसाई समुदाय का विरोध
ईसाई समाज ने प्रशासन के आदेश पर कड़ा विरोध जताया है। उनका कहना है कि हाउस चर्च कोई नई परंपरा नहीं है बल्कि दुनिया भर में मान्य धार्मिक प्रथा है। ग्रामीण इलाक़ों या जहाँ चर्च नहीं है, वहाँ लोग घरों में शांति से प्रार्थना करते हैं। समुदाय ने धर्मांतरण के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उन पर बजरंग दल जैसे संगठनों द्वारा झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं। उन्होंने प्रशासन से निष्पक्ष जांच की मांग की है और यहाँ तक कहा है कि वे अपने घरों में सीसीटीवी लगाने को भी तैयार हैं।
संवैधानिक पहलू
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है। प्रशासन इसी प्रावधान का हवाला दे रहा है, जबकि समुदाय अपने अधिकारों पर अडिग है।
अदालत की शरण
ईसाई समाज ने इस रोक को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि केवल शिकायतों के आधार पर किसी समुदाय की धार्मिक गतिविधियाँ रोकी जाती हैं, तो यह लोकतंत्र और संविधान की मूल भावना के लिए खतरा बन सकता है।
अब सभी की निगाहें अदालत के फैसले पर टिकी हैं कि वह इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या दिशा-निर्देश देती है।