साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

प्रदीप नायक प्रदेश अध्यक्ष सदगुरु कबीर सेना

साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

मां गंगा अपने ह्रदय की वेदना को अपनी छोटी बहन पार्वती से एक दिन कह ही दी। बस क्या था--मां पार्वती मां गंगा को साथ लिए मेरे आश्रम पर पहुंच गई। मैं दोनों को एक साथ देख कर अवाक् था। फिर यथाशक्ति उन दोनों मां का पूजा-अर्चना किया। अपना सिर उनके पैर पर रखकर प्रार्थना की---हे मां! मुझसे क्या गलती हो गई? आपने स्वयं आने का क्यों कष्ट किया? मां पार्वती अपने आसन से उठ कर मेरे मस्तक पर हाथ फेरते हुए अश्रुपूर्ण नेत्रों से बोली-पुत्र मैं तुम्हारे इस स्थिति से एवं भगवान के रूष्ट व्यवहार से दुखी हूं। तुम वर मांगो पुत्र! पुत्र झोपड़ी में तथा अभागिन मां महल में। ऐसा कैसे हो सकता है। तुम क्या चाहते हो पुत्र वर मांगो।

मैं हाथ जोड़कर कहा--मां तुम्हारी अनुकंपा बनी रहे। भगवान शंकर काशी में विराजते रहे। यही मेरी कामना है। नहीं पुत्र नहीं, तुम आज मांग लो। मां मैंने मांगना नहीं सीखा है। मां की मंगल कामना चाहता हूं। मां भगवती एवं गंगा मां दोनों के नेत्रों से अश्रु धारा बह चली। दोनों ने एक साथ कहा--ऐसा तो पुत्र पृथ्वी पर पैदा नहीं हुआ। आज से मां अपने पुत्र के साथ रहेगी।

मैंने कहा--नहीं मां ऐसा मत करो। फिर भगवान शंकर एवं उनके गण भूखे रह जाएंगे। मुझे पाप का भागी मत बनाओ मां। मां ने कहा-तुम कितने महान हो पुत्र! ठीक है--आज से काशी में कोई भूखा नहीं रहेगा। वहां मैं अन्नपूर्णा के रूप में रहूंगी। इस तरफ मां गौरी के रूप में मैं तुम्हारे साथ रहूंगी। तब से यह क्षेत्र गौरी क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

जब भगवान शंकर को ज्ञात हुआ कि पार्वती अपने पुत्र के साथ उस पार झोपड़ी में रहने लगी है। उन्हें बड़ा महसूस हुआ। जीवन में एक बार भीख भी मांगा तो उसमें भी मेरी हार हो गई। वे भी इस तरफ अंदर डमरु बजा कर तांडव नृत्य करने लगे। जहां डमरु बजाए थे वही जगह डमरु से अपभ्रंश होकर डूमरी हो गई। देवोदास के भक्तों, अनुयायियों को सिद्धि प्रदान किए। उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दिए, वही जगह  सुजाबाद हो गया। इसी तरह आस-पास के जगहों  का नाम कालांतर में प्रसिद्ध हो गया।

स्वामी जी आप वर्षों से वाराणसी क्षेत्र में आश्रम बनाने हेतु जमीन खोज रहे थे। परंतु आपको यह विदित होना चाहिए कि जो क्षेत्र मैं दान दे चुका हूं, उस क्षेत्र में मेरे वंशज कैसे रहेंगे। देखिए भगवान राम काशी आए ही नहीं। भगवान कृष्ण को मथुरा के विद्वान लोगों ने सुझाव दिया कि आप काशी जाकर विद्या अध्ययन करो। वे साफ नकार गए और उज्जैन चले गए। भगवान बुद्ध आए तो काशी के बाहर सारनाथ ही रुक गए। भगवान महावीर भी बाहर-बाहर चले गए। औघड़ कीनाराम काशी के बाहर कि कुंड पर रुक गए। स्वामी आत्मा दास जी काशी के सामने गौरी क्षेत्र में ही आसन जमा लिए। औघड़ भगवान राम जी राजघाट के सामने आसन लगा लिए।इतना ही नहीं कबीर साहब अपना गुरु स्वामी रामानंद जी को बनाएं। गुरु सेवा के लिए दशासुमेर घाट आते थे। किंतु स्थायी निवास बनाने हेतु काशी का क्षेत्र छोड़कर कबीरचौरा का क्षेत्र चुना। भले ही उस समय वहां कसाईबाड़ा एवं वेश्या बाड़ा था। कितने लोगों का नाम गिनाऊं।जब आपको मैं इस जमीन पर निमंत्रण देकर लाया एवं जमीन दिखाया तो आप तुरंत पसंद कर लिए। परंतु दिल्ली प्रवास के चलते आप भूल जाते। जमीन वाले को ही सीधे आपके पास बार-बार भेजने लगा। दो वर्ष आपके यहां दौड़ा एवं कम दाम में वह जमीन आपको सौंप दी गई। हम लोग इसी भूभाग में रहते हैं। अतएव हम लोगों की कामना है कि आप यही विराजमान होकर विश्व को नई चेतना, दिशा-निर्देश दें।

ब्रह्मर्षि विश्वामित्र बगल के गाधीपुर (गाजीपुर) के ही राजा थे। वे अयोध्या जाते समय भी कांशी से दूर-दूर होकर निकल गए हैं। वे एक बार अति क्रोधित वातावरण में यहां आए थे। जब हरिश्चंद्र को श्मशान पर भीख मांगना पड़ा था। (विशेष जानकारी हेतु मेरी पुस्तक शिव तंत्र देखें।) हरिश्चंद्र को उनका राज्य वापस कर देवताओं को दंडित कर पुनः सिद्धाश्रम चले गए। सिद्धाश्रम भी गंगा के उस पार है।जहां विश्वामित्र जी अपने जीवन का अधिकांश भाग बिताए। वहीं से पूरे विश्व को नई चेतना का नया आयाम दिए। (विशेष जानकारी हेतु मेरी पुस्तक कबीर गुरु बसैं बनारसी का अवलोकन करें।) आपका भी अधिकांश समय सिद्धाश्रम में ही बीता है।

आपके लिए यह जगह उपयुक्त है। हम सभी दिव्यात्मा आपके साथ हैं। आपको या आपके शिष्यों को निमित्त मात्र रहना है। देखिए प्रत्येक कार्य का अपना समय होता है। प्रत्येक सद्गुरु का अपना समय और कार्य भी होता है। यह समय और कार्य आपका है। आप विश्वामित्र के उत्तरदायित्वों को वहन कर रहे हैं।

आपके साथ मां गंगा एवं मां भगवती के साथ-साथ सामने बैठे हजारों दिव्यात्माएं हैं। मैं भी आपके साथ हूं। अभी पूरा विश्व पाप पंक में फंसा है। इसका उद्धार करना ही होगा। आपका आगमन इसी उद्देश्य से हुआ है। उस युग के शिखर पुरुष भगवान परशुराम आपके साथ नहीं थे। न ही पुरोधा वर्ग था। न ही आर्यावर्त के राजा थे। फिर भी अदम्य साहस अभूतपूर्व हिम्मत से पूरे आर्यावर्त के परिवेश को बदल दिया। अभी परशुराम जी आपके समक्ष हैं। संभवतः इसी क्रम में इनका आगमन हुआ है। वे भी अपना मंतव्य आपके सामने रखेंगे।

क्रमशः.…..