जंग सारी जितनी हैं

डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

जंग सारी जितनी हैं

जंग सारी जितनी हैं 

आज नारी बढ़ रहीं हैं
बेडियों के काटते पर।
साँस में महकी हवाएँ 
बाँटती हैं मधुर स्वर।।

बोलती आँखे कहानी 
महकतीं- सी रात-रानी
खनकती चूड़ी करो में
बाँध पल्लू कर दिवानी
देख नन्हे पग बढ़ाती 
घाव-सा छिपता महावर।

डोलती उपवन पवन-सी
सरर सर-सर झूमती हैं
भोर का तारा चमकता
अक्ष पृथ्वी घूमती है
है चकोरी बूँद प्यासी
ताकती है आसमां सर।

हर महादेवा पुकारे
जंग सारी जीतनी हैं 
युग-युगों इतिहास रचती
काल-रेखा खींचनीं हैं 
पी हलाहल कंठ नीला
सुर उचारे शोर हरहर।