धरती में है अभी तपन
premdeep
धरती में है अभी कितनी तपन,
बादल तू फिर भी है ऐसे में मगन।
क्या इन्हें देख तुम्हें दया नहीं आती,
इतराके तू उड़ परदेश चली जाती।
सभी जीव देख रही है तेरी राह,
अभी भी है बारिश का माह।
प्रतीक्षा हो गई बहुत भारी,
निभानी पड़ेगी पहले जैसी यारी ।
खेलों ना ऐसे हमसे आंख मिचोली,
भरदे तू नीर से धरती की झोली।