'मतपत्र की बजाए ईवीएम से चुनाव क्यों', संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार
जन प्रतिनिधित्व कानून के जिस प्रावधान के तहत मतपत्र की बजाए ईवीएम से चुनाव करवाए जाने की शुरुआत की गई थी, सुप्रीम कोर्ट में उस प्रावधान को चुनौती दी गई है. कोर्ट इस याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करने के लिए सहमत हो गया है.
उच्चतम न्यायालय बुधवार को जन प्रतिनिधित्व कानून से संबंधित एक प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है. जन प्रतिनिधित्व कानून के इस प्रावधान के तहत ही देश में चुनाव में मतपत्र की बजाय इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से मतदान की शुरुआत हुई थी. प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने अधिवक्ता एमएल शर्मा की दलीलें सुनीं और कहा कि वह उनके मामले को सूचीबद्ध करने पर विचार करेंगे.
शर्मा ने यह याचिका व्यक्तिगत रूप से दायर की है. शर्मा ने दलील दी कि पांच राज्यों - उत्तर प्रदेश, गोवा, पंजाब, मणिपुर और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसके मद्देनजर इस याचिका पर सुनवाई जरूरी है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'हम इस पर गौर करेंगे... मैं इसे अन्य पीठ के समक्ष भी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर सकता हूं.' शर्मा ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 61ए, जो ईवीएम के इस्तेमाल की अनुमति देती है, को संसद ने पारित नहीं किया था. इसलिए इस प्रावधान को लागू नहीं किया जा सकता है.
अधिवक्ता ने कहा, 'मैंने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों के साथ याचिका दायर की है. मामले में न्यायिक संज्ञान लिया जा सकता है... कि चुनाव मतपत्रों के माध्यम से होने दिया जाए.' याचिका में केंद्रीय कानून मंत्रालय को एक पक्ष बनाया गया है. इसमें जन प्रतिनिधित्व कानून के इस प्रावधान को अमान्य, अवैध और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है, क्योंकि इसमें ईवीएम का कोई प्रावधान नहीं है. पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव 10 फरवरी से 10 मार्च के बीच होंगे.