अधुनातन
डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग
अधुनातन अब नगर फैलता
चकाचौंध ने भरमाया
बारिश का जब जोर पड़ा तब
ताल-नदी शहरी-माया ।
भवनों के गुम्बद परकोटे
झोपड़ियों को लील गए
गायब हैं जल-मार्ग निकासी
पानी भर-भर ताल किए
नाव बनी तब जीवन रक्षक
प्राण बचाने वह आया।
कहाँ कहाँ गुम होती आहें
सुख-दुख बाँटे मदद जुटा,
केवल जीवन मोल तौलता
रो न सका घर-बार लुटा
कोप प्रकृति डरता मनवा
मौत खड़ा बहरा साया ।
सपने टूटे छूटा ऑगन
पीर घनेरी लहराई
टपक पड़े पर्वत के आँसू
मगन धरा जल घबराई
मानवता का हाथ पकड़ लो
वात प्रलय हैं गहराया।