छत्तीसगढ़ के छत्तीस माह: कांटों की राह में विकास की चाह
अविभाजित मध्यप्रदेश के समय धान का कटोरा कहलाने वाला हमारा छत्तीसगढ़ जब से अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया है, विकास की नित नई सीढियां चढ़ रहा है। विकास के इस उतार चढ़ाव में छत्तीसगढ़ के किसान, गरीब और मजदूर राज्य बनने के वर्षों बाद भी जहाँ जैसे थे वही क्यों रह गए? शायद इन सवालों का जवाब किसान और मजदूर ही दे पाएंगे।
सभी मानते हैं कि विकास हुए। सड़कें बनीं, भवन बने, लेकिन क्या हम सबका सपना यही था कि राज्य बनने के बाद हमारा छत्तीसगढ़ महानगरों की तरह विकसित हो ? जी नहीं.. दरअसल छत्तीसगढ़ राज्य बनने और बनाने के पीछे यहाँ की माटी से जुड़े सभी लोगों का सपना था कि वे अपने स्वाभिमान और आत्मसम्मान के साथ अपने राज्य में रह सकें। यहाँ रहने वाले किसानों का सपना था कि उन्हें उनकी मेहनत का सही दाम मिले। मजदूर हो या गरीब सबके मन में छत्तीसगढ़ राज्य के साथ एक अटूट विश्वास भी था कि सत्ता सम्हालने वाली सरकारें उनके साथ भेदभाव न करें और उन्हें आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने में मदद करते हुए सुख-दुख की साथी बनें। यहाँ रहने वाले अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों और पिछड़ा वर्ग सहित सभी समाज के लोगों को साथ लेकर चले।
सैकड़ों सपनों के साथ बने छत्तीसगढ़ राज्य में छत्तीसगढ़ियों ने नई सरकार को सत्ता पर बिठाया। 17 दिसंबर 2018 को जब नई सरकार ने शपथ ली तो भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने। एक किसान और जमीन से जुड़े ऐसे जुझारू नेता के मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने से उनकी किसानी छवि से ज्यादा उनका आक्रामक स्वभाव हमेशा विरोधियों के लिये एक कांटे के जैसा बना रहा। वे छत्तीसगढ़ियों के भीतर मौजूद ठेठ छत्तीसगढ़िया का वह भाव और छत्तीसगढ़ की परम्परा, संस्कृति, जो आधुनिक विकास और समय की चकाचौंध में कही गुम हो गयी थी, उन्हें पुनर्जीवित करना चाहते थे। वे जानते थे कि छत्तीसगढ़ का विकास बिना यहां के गरीबों, किसानों और मजदूरों को ऊपर उठाए बिना संभव ही नहीं है। वे जानते थे कि हमारे राज्य के किसान वर्षों से कर्ज में डूबे हुए हैं। धान का बेहतहाशा उत्पादन करने के बाद भी उत्पादन का सही मूल्य उन्हें नहीं मिल पा रहा है। राज्य के किसान खेती किसानी में हो रहे नुकसान की वजह से खेत बेचने में लगे हैं। वे किसानी छोड़ मजदूर बनते जा रहे हैं। गांव से परिवार बिखर रहा है। बाहर के प्रदेश जाकर किसान मजदूर बनते जा रहे हैं और राज्य की परम्परा, संस्कृति भी बिखर रही है। भूपेश बघेल के मन में यह सभी बातें रही होंगी। शायद यहीं वजह है कि छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने किसानों के मर्म को समझा और किसी तरह का दबाव नहीं होने के बावजूद भी कुर्सी पर बैठते ही 18 लाख से अधिक किसानों का 9 हजार करोड़ रुपए ऋण माफी का, दूसरा 2500 रुपये धान खरीदी का फिर लोहंडीगुड़ा में आदिवासियों की जमीन वापसी का फैसला लिया। उन्होंने सिंचाई कर माफ करते हुए बिजली बिल भी आधा कर सभी वर्गों को बड़ी राहत पहुचाई।
किसान हित में लिया गया यह छत्तीसगढ़ सरकार का बड़ा नीतिगत निर्णय था, लेकिन इस निर्णय के विरूद्ध कुछ ऐसे कांटों की राह बिछा दी गई कि जिस पर चलना यानी छत्तीसगढ़ को एक बड़ा नुकसान उठाना था। यह एक चुनौती जैसी थी, फिर भी मुख्यमंत्री श्री बघेल ने संयम और सूझबूझ दिखाते हुए किसानों के हित में आगे कदम बढ़ाया। वे चाहते तो किसानों को लाभान्वित करने की बजाय केंद्र के नियमों का हवाला देकर कई हजार करोड़ रूपये बचा लेते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। मुख्यमंत्री ने राजीव गांधी किसान न्याय योजना बनाई। उनकी नरवा, गरवा, घुरवा, बारी जैसी योजनाएं किसी फलदार वृक्ष की तरह प्रदेश के हर जिलें-हर गांव में अंकुरित होने लगी। गोधन न्याय योजना से रोजगार और पर्यावरण, पशु संरक्षण को नई दिशा मिली।
मुख्यमंत्री बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ विकास की राह में तब भी पूरी गति से चलायमान था, जब विश्वव्यापी कोरोना के कहर से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था कराह रही थी। स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के साथ कोरोना से निपटने की हर संभव कोशिश की गई। पहली और दूसरी लहर में उपजे संकट को दूर करने में सरकार ने कई अहम फैसले लिए। यह वह समय था, जब लॉकडाउन होने से किसानों के पास पैसों का संकट उठ खड़ा हुआ। इस विपरीत समय में भी मुख्यमंत्री ने राजीव गांधी न्याय योजना और गोधन न्याय योजना के माध्यम से किसानों और गौ-पालकों की जेब में पैसे डाले और वनोपज संग्रहण, मनरेगा से समय पर राशि भुगतान कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाकर छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाए रखा। कोविडकाल में राज्य में उपचार हेतु मेडिकल उपकरणों के उत्पादन को प्राथमिकता के साथ कोविड प्रबंधन हो या बाहर से आने वाले मजदूरों को सुरक्षित घर तक पहुंचाने का काम, मुख्यमंत्री ने यहां भी अपनी दक्षता साबित की। उन्होंने परिवारों के लिए निःशुल्क राशन की व्यवस्था सुनिश्चित की। स्कूल बंद होने पर पढ़ई तुंहर दुआर के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा जारी रख विद्यार्थियों को तनाव से उबारा। कोविडकाल में मृत कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपा नियुक्ति देने नियमों को शिथिल किया।
ऐसा नहीं कि उन्होंने सिर्फ किसानों, गौ-पालकों के लिये ही सबकुछ किया। वनवासियों के लिए भी बड़े कदम उठाये। वन अधिकार पत्र देने के साथ वनोपज संग्रहण, तेंदूपत्ता समर्थन मूल्य में इजाफा कर सुदूरवर्ती क्षेत्रों के लोगों के लिए भी आर्थिक संबलता के द्वार खोले। कृषि ऋण माफी, सिंचाई कर माफी के अलावा सिंचाई क्षमता दोगुना करने की पहल की और बोध घाट सिंचाई परियोजना सहित कई बड़ी परियोजनाओं, एनीकट, व्यपवर्तन योजनाओं पर भी अपना ध्यान केन्द्रित किया।
उन्होंने गरीबों को लक्ष्य बनाकर उनसे जुड़ी योजनाएं बनाई और राज्य के विकास में इन योजनाओं को महत्वपूर्ण माना। राज्य में संचालित मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना, दाई-दीदी क्लीनिक, मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लीनिक योजना, स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल योजना, मुख्यमंत्री वार्ड कार्यालय योजना, छत्तीसगढ़ महतारी दुलार योजना, पौनी-पसारी योजना, मुख्यमंत्री सुगम सड़क योजना, शहीद महेंद्र कर्मा तेंदूपत्ता संग्राहक सामाजिक सुरक्षा योजना, धरसा विकास योजना, मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना, मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान, शहरी गरीबों को पट्टा एवं आवास, ई.पंजीयन, रामवनगमन पर्यटन परिपथ का विकास, प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण और पिछड़े अंचलों के विकास के लिए पांच नए जिले का निर्माण, अनेक नई तहसीलों के गठन, आदिवासियों के विरूद्ध दर्ज प्रकरणों की वापसी, चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई कर निवेशकों का पैसा वापस कराने सहित राष्ट्रीय स्तर पर राज्य की संस्कृति को बढ़ावा देने आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया। मुख्यमंत्री बघेल छत्तीसगढ़ की संस्कृति, परम्परा के बड़े संरक्षक व संवाहक साबित हुए। उन्होंने तीज-त्यौहारों से लेकर यहा की सांस्कृतिक विरासत को भी अक्षुण्ण बनाये रखने की दिशा में काम किया। सार्वजनिक अवकाश घोषित कर सभी को अपने पर्व से जुड़े रहने का अवसर दिया। अधोसंरचना से जुड़े कार्यों शासकीय भवनों, सड़कों और पुलों के निर्माण कार्य भी कराए। उन्होंने गौठानों के माध्यम से स्व-सहायता समूहों को आर्थिक रूप से और भी सशक्त बनाने की दिशा में काम किया। उनके द्वारा बनाए गए उत्पादों को सी-मार्ट सहित अन्य बाजार उपलब्ध कराने के साथ कर्ज में दबे महिला समूहों के कर्ज भी माफ किया। छत्तीसगढ़ से कुपोषण मिटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली वह चाहे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका हो या फिर छत्तीसगढ़ को स्वच्छ बनाने वाली स्वच्छता दीदी, मुख्यमंत्री ने उनका मानदेय बढ़ाकर उनका मनोबल बढ़ाया। वर्षों से संविलयन की मांग करने वाले शिक्षकों का संविलयन तो किया ही, स्कूलों में शिक्षकों की सीधी भर्ती, पुलिस में जवानों की भर्ती के अलावा रोजगार के अनेक नये अवसर भी विकसित किए। आदिवासी अंचलों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का काम किया गया है। बस्तर अंचल में सैकड़ों बंद पड़े स्कूलों को शुरू किया गया। छोटे भू-खण्डों की खरीदी, जमीन की गाइड लाइन दरों में 30 प्रतिशत की कमी जैसी कल्याणकारी कदम उठाए गए।
विकास की दिशा में छत्तीसगढ़ सरकार का कार्यकाल जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, चुनौतियां आती गई। लॉकडाउन में बाजार बंद होने से जीएसटी संग्रहण में फर्क आया, लेकिन बाजार खुलने के दौर में संग्रहित जीएसटी में से राज्य के हिस्से की राशि समय पर राज्य को नहीं मिलने से भी कार्य प्रभावित हुए। छत्तीसगढ़ से चावल को लेने का मामला हो या इथेनॉल, प्रधानमंत्री आवास योजना या फिर जीएसटी से जुड़ा हुआ मामला। अनेक व्यवधानों की वजह से जनहित और कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े हुए मामलों में आगे बढ़ना कांटों की राह में चलने के समान था।
एक किसान जब खेत में फसल उगाता है तो कई बार फसलों पर मौसम की मार और खड़ी फसल पर कीट-पतंगों का हमला होता है। किसान अपनी फसल बचाने कीटनाशकों का इस्तेमाल करता है। चुनौतियों से जूझते हुए किसान फसल उगा ही लेता है। ठीक वैसे ही अनेक व्यवधान और चुनौतियों के बावजूद किसान मुख्यमंत्री बघेल ने राज्य के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी। शपथ लेते ही किसानों के कल्याण से शुरू की गई उनकी मुहिम हर चुनौतियों में भी सतत् जारी रही। देश के अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य भी है, जहां किसानों का आंदोलन भी नहीं हुआ। खेती से जुड़े वे युवा जो अपने उत्पादन का सही मूल्य नहीं मिलने पर खेती-किसानी से दूर जा रहे थे, उन्हें अब कृषि के क्षेत्र में सुनहरा भविष्य नजर आने लगा है। शायद यहीं वजह है कि वे भी अब छत्तीसगढ़ सरकार के किसान हितैषी फैसलों को देखकर खेती-किसानी से जुड़ने लगे हैं। मुख्यमंत्री बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की सरकार ने छत्तीस माह में विकास की बुनियाद खड़ी करने के साथ धरातल पर फलीभूत भी किया है। उनके नेतृत्व में प्रदेश को अनेक राष्ट्रीय सम्मान भी हासिल हुआ और देश भर में पहचान बढ़ी।
हम सभी जानते है कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर के बीच छत्तीसगढ़ की सरकार ने चुनौतियों के बीच 36 माह में जो-जो उपलब्ध्यिां हासिल की वह किसी से छिपी नहीं है, अब जबकि कोरोना का खतरा फिर से मंडरा रहा है। तीसरी लहर के संकेत है। ऐसे में नये साल में छत्तीसगढ़वासियों को पूरा भरोसा है कि कोरोना प्रबंधन को पुनः अपनाकर छत्तीसगढ़ियों के गौरव और आत्मसम्मान के खातिर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांटों की राह में चलकर विकास और सबकों न्याय देने के साथ सशक्त बनाने की राह में सतत् आगे बढ़ेंगे और एक नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने में कामयाब होंगे।