ज्वरमुक्त मानसिक संतुलन

ज्वरमुक्त मानसिक संतुलन
मुकेश कुमार मोदी,बीकानेर, राजस्थान

जीवन के हर क्षेत्र में ऊर्जा का बहुत बड़ा महत्व है जो विभिन्न रूपों में हम उपयोग करते हैं । ऊष्मा, ऊर्जा, उष्णता या गर्मी इसके विभिन्न रूप हैं जिसका जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उपयोग होता है । किन्तु हर कार्य में उर्जा की उष्णता के स्तर व उसके सन्तुलन की अनिवार्यता भी ध्यान रखनी होती है ।

उदाहरण के लिए उष्णता की निर्धारित मात्रा या स्तर पर ही एक रोटी सही ढंग से पकती है अन्यथा वह जलकर बेस्वादी हो जाती है । इसलिए उष्णता की मात्रा या उसका स्तर सन्तुलित होना आवश्यक है । शारीरिक स्वास्थ्य एवं सन्तुलन के लिए शरीर की उष्णता की मात्रा निर्धारित है । यदि उससे अधिक उष्णता शरीर में पाई जाती है तो वह ज्वर या बुखार कहलाता है जो अन्य शारीरिक व्याधियों को जन्म देने के निमित्त बनता है ।

इसी प्रकार हमारी मानसिक स्थिति का तापमान भी निर्धारित है । यदि मानसिक अवस्था शान्त है स्थिर है तो वह सही ढंग से कार्य करती है जिससे आसपास का वातावरण भी उसी अनुरूप शान्त रहता है जो हमें अलौकिक आनन्द की अनुभूति कराता है । यदि मानसिक तापमान बढ़ जाता है तो उसका प्रभाव हमारे आचरण में दिखाई देता है । उद्वेग, आवेश, उत्तेजना, मदहोशी, आतुरता, क्रोध, चिन्ता, तनाव आदि आदि लक्षण हमारे जीवन में नजर आने लगते हैं । मानसिक तापमान अर्थात् मानसिक ज्वर मनुष्य के ज्ञान और विवेक को नष्ट करते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य के लिए वर्जित आपराधिक व अनैतिक कार्य भी करने के लिए आतुर हो उठता है । मानसिक ज्वर की ये अवस्था उसके शान्तिपूर्ण सुखमय जीवन की अभिलाषा पूर्ण करने में सबसे बड़ी बाधा है ।

अक्सर प्रतिकूल परिस्थितियों में या किसी से वाद-विवाद होने पर लोग चिन्ता, शोक, निराशा, भय, घबराहट, क्रोध आदि के वशीभूत होकर अपनी मानसिक शांति खो बैठते हैं । यदि कोई बड़ी सफलता मिलती है, सम्पत्ति अथवा पद प्राप्त होता है, तब भी उसके नशे में मदमस्त होकर लोग अति भोग, अति हर्ष और अन्य मानसिक दोषों के चंगुल में फंस जाते हैं ।

इसलिए किसी भी प्रकार की असामान्य मानसिक उत्तेजना अथवा मानसिक ज्वर से मनुष्य की अर्न्तचेतना विक्षिप्त होने लगती है । इसी कारण मनुष्य को तरह-तरह के अनिष्टकारी परिणाम भोगने पड़ते हैं । अतिशीघ्र उत्तेजना अथवा आवेश में आने वाली प्रवृत्ति मानसिक निबर्लता का प्रतीक है जो हमें किसी भी कार्य को एकाग्रतापूर्वक सम्पन्न करने में सफल नहीं होने देती बल्कि आत्म उन्नति में बाधक बनकर पतन की ओर प्रेरित करने का मुख्य कारण बन जाती है । इसलिए मन की नैसर्गिक शान्तिपूर्ण स्थिति में स्वयं को स्थित रखते हुए ज्वरमुक्त मानसिक सन्तुलन के आधार पर ही स्वस्थ व सुखी जीवन का सौभाग्य प्राप्त करें ।

*ॐ शांति*

*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*

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