सदगुरु कबीर सेना स्थापना के उद्देश्य
प्रदीप नायक ( प्रांतीय अध्यक्ष) सदगुरु कबीर सेना छत्तीसगढ़
लक्ष्य तो हमारा आत्म रक्षार्थ जगत हिताय है, लेकिन जब तक देश, धर्म, संस्कृति सुरक्षित नहीं है। तब तक आपका परम लक्ष्य दोनों भटकाव के श्रेणी में होगा। वर्तमान भारत वर्ष की जनसंख्या में युवा वर्ग सबसे ज्यादा है,जो स्थिति परिस्थिति अर्थात वर्तमान परिवेश, शिक्षा ,पश्चात्य सभ्यता , इंटरनेट,पश्चिमी संस्कृति के चलते बौद्धिक ज्ञान तो बढ़ा, किंतु अपनी सभ्यता, संस्कृति ,राष्ट्र प्रेम की भावना से दुराव हो गया।
उन्हें अपने पूर्वजों का जीवन शैली रूढ़िवादी ,परंपरावादी, दकियानूसी प्रतीत होती है ।इसका कारण इनके पीछे ज्ञान विज्ञान के रहस्य को हमने जाना नहीं है,अपने नई पीढ़ी को अवगत कराया नहीं। कबीर सेना का मूल कार्य - #कल जुगे संघे-शक्ति # संगठित एकता बल से ही राष्ट्र का सम्मान व धर्म की पुनः स्थापना संभव है। और हमारा भविष्य युवा वर्ग को संगठित कर उनके चाल, चरित्र, चिंतन का निर्माण करना अपने धर्म की ज्ञान विज्ञान के संबंध आध्यात्मिक पद्धति से अवगत कराना ।सद्गुरु जी द्वारा अथक परिश्रम से अर्जित ईश्वरीय वैज्ञानिक प्रार्थना पद्धति दिव्य गुप्त विज्ञान के माध्यम से हमारे धर्म ,सभ्यता, संस्कृति व राष्ट्रप्रेम की भावना में क्रांति लाना होगा तब हमारा लक्ष्य आत्म मोक्षार्थ जगत् हितायश्च सफलता को प्राप्त करेगा।
सदगुरुदेव जी कबीर सेना में श्री राम की मर्यादित जीवन शैली ,श्री कृष्ण कि राष्ट्रवाद धर्म के प्रति प्रेम ,बुद्ध की अहिंसा परम धर्म और सदगुरु कबीर की समाज की प्रथम व्यक्ति से लेकर अंतिम व्यक्ति तक सद्भावना, प्रेम ,भाईचारे की भावना देखना चाहते हैं, क्योंकि इनका मानना है परमात्मा एक,पृथ्वी एक , सूर्य एक, चंद्र एक, पर धर्म क्यों अनेक समग्र समाज एक मानव धर्म के रुप में देखना इनका एक संकल्प है। श्री सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद महाराज जी ने दिल्ली मुख्यालय में चैत्र नवरात्रि शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को शनिवार संवत 2076 दिनांक 6:04 2019 को अभिजीत मुहूर्त 11:40 बजे से 12:20 बजे के बीच उपस्थित सद् विप्रो के मध्य सदगुरु कबीर सेना की स्थापना कर केंद्र कार्यकारिणी की आधारशिला रखी।
देश,धर्म व संगठन हेतु प्रतिदिन एक घंटा देने की आवश्यकता न्यूनतम है। संपूर्ण नहीं वांछनीय तो यह है कि धीरे-धीरे हमारी जीवन पद्धति ही संगठन में बनती चली जाए। यदि संसार में अजय राष्ट्र बनकर जीना है तो हमें संगठित रहने का स्वभाव ही बना लेना पड़ेगा।सेना का उद्देश्य संपूर्ण समाज को संगठित करना है अब इतना बड़ा कार्य तभी पूरा हो सकता है जब इसे जीवन कार्य के रूप में लिया जाए।हमारे गुरुदेव ने अपना तन, मन ,धन समग्र समाज के उत्थान में लगा चुके हैं और यह उनका लक्ष्य है और हम उनकी संतान हैं तो आज उनका प्रभाव हम सभी संतानों में दृष्टिगोचर होना चाहिए। गुरुदेव जी प्रवचन में बताते हैं - छत्रपति शिवाजी एक बड़े जागीरदार के पुत्र थे , तत्कालीन बहुत से राजे रजवाड़ों की भांति वह भी मुगल शासकों के दरबारी बनकर विलासिता पूर्ण जीवन जी सकते थे। किंतु उन्होंने स्वराज्य प्राप्ति का कष्टों से भरा मार्ग चुना ।सुख का मार्ग अपनाने की कल्पना तक नहीं की, जिनके अंतः करण में महान कार्य की आग जलती रहती है,वे दूसरों की सहायता के लिए कभी प्रतीक्षा नहीं करते। शिवाजी ने 16 वर्ष की आयु में ही तोरण दुर्ग जीतकर स्वराज्य का ध्वजा फहरा दिया था सोचिए कि 16 वर्ष में इतना पराक्रम करने के लिए उन्होंने कितनी कम आयु में देशभक्ति की उमंग अपने अंदर संचित की होगी।जीना है तो देश के लिए ,मरना है तो देश के लिए यही उनका संकल्प था धर्माभिमान की ज्योति उनके ह्रदय में सदैव जलती रहती थी। और यह इतनी तीव्र थी कि जो भी उनके पास जाता उसे वे उस कार्य के लिए तैयार कर लेते जैसे एक प्रज्वलित दीपक हजारों दीपों को प्रज्वलित कर देता है और वही प्रज्वलित दीपक सदगुरुदेव जी कबीर सेना के रूप में स्थापित किए है ,जिन का प्रमुख कार्य - जन-जन तक जाकर लोगों को जागरूक करना है।#जहां-जहां जाओ सोई परिक्रमा जो कुछ करो सो पूजा# और यही श्रद्धा -भक्ति से सत मार्ग में लग जाना ही ध्यान ,पूजा और परिक्रमा ,आराधना, साधना में परिवर्तित हो जाता है।