नगरीय निकायों में ‘प्रतिनिधि’ प्रथा पर रोक, महिला पार्षदों के रिश्तेदार नहीं निभा सकेंगे भूमिका
छत्तीसगढ़ के नगरीय निकायों में अब चुनी हुई महिला पार्षदों के रिश्तेदार, नातेदार या उनके कथित प्रतिनिधि किसी भी रूप में कार्य नहीं कर सकेंगे। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के संज्ञान और नोटिस के बाद राज्य सरकार के नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने इस संबंध में सख्त आदेश जारी किया है।
दरअसल, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को मिली शिकायतों में यह आरोप लगाया गया था कि सांसदों, विधायकों और अन्य जनप्रतिनिधियों द्वारा निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के पति या करीबी रिश्तेदारों को अनौपचारिक रूप से संपर्क व्यक्ति या प्रतिनिधि बनाकर नगरीय निकायों के कामकाज में दखल दिया जा रहा है। इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान में निहित विकेंद्रीकरण की भावना के खिलाफ बताया गया था। इस मुद्दे को हरिभूमि ने भी प्रमुखता से उठाया था।
आयोग के सदस्य प्रियांक कानूनगो की अध्यक्षता वाली पीठ ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 12 के तहत मामले का संज्ञान लेते हुए छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों को नोटिस जारी किया था। आयोग ने इसे महिलाओं के सम्मान, समानता और स्वशासन के अधिकार से जुड़ा गंभीर विषय माना।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के नोटिस के बाद अब नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने सभी नगर निगम आयुक्तों और मुख्य नगर पालिका अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं। आदेश में कहा गया है कि कुछ नगरीय निकायों में निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों के पारिवारिक रिश्तेदारों को प्रॉक्सी प्रतिनिधि या लायजन पर्सन के रूप में कार्यरत पाया गया है, जो संविधान के अनुच्छेद 15(3) और 21 का उल्लंघन है।
विभाग ने निर्देश दिए हैं कि सभी नगरीय निकाय अपने-अपने क्षेत्र में ऐसे मामलों की तत्काल जांच करें और सांसदों व विधायकों को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देशों के पालन के लिए अवगत कराएं। साथ ही, यदि आवश्यक हो तो अन्य नामांकित जनप्रतिनिधियों की नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरू की जाए।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट भी दो साल पहले यह स्पष्ट कर चुका है कि निर्वाचित महिला सरपंचों के पतियों या पुरुष रिश्तेदारों द्वारा उनके स्थान पर अधिकारों का प्रयोग करना असंवैधानिक और गैरकानूनी है। इसी आधार पर अब यह जांच की जा रही है कि नगरीय निकायों में भी कहीं सांसद, विधायक या पार्षद अपने रिश्तेदारों को प्रतिनिधि के रूप में तो नहीं बैठा रहे हैं।
इस आदेश के बाद छत्तीसगढ़ के नगरीय निकायों में तथाकथित ‘सरपंच पति’ या ‘पार्षद पति’ जैसी प्रथाओं पर प्रभावी रोक लगने की उम्मीद की जा रही है।