जज साहब! मेरी पत्नी स्त्री नहीं बल्कि एक मर्द है, SC में पति का अजीबो-गरीब आरोप

शख्स का कहना है कि उसकी पत्नी एक महिला नहीं बल्कि मर्द है। उसके साथ धोखाधड़ी हुई है। पीड़ित शख्स ने इस मामले में न्याय दिलाने के लिए SC में अर्जी दाखिल की है।

जज साहब! मेरी पत्नी स्त्री नहीं बल्कि एक मर्द है, SC में पति का अजीबो-गरीब आरोप

नई दिल्ली । एक संपूर्ण विवाह के लिए एक नर और नारी का सेक्स के लिए स्वस्थ होना आवश्यक है पर अगर उन दोनों में दैहिक संबंध में बाधा हो तो निश्चित ही तनाव होना स्वाभाविक है।
सुप्रीम कोर्ट (SC) में एक हैरान करने वाला एक मामला सामने आया। कोर्ट में एक शख्स ने अजीबो-गरीब आरोप लगाया। शख्स का कहना है कि उसकी पत्नी एक महिला नहीं बल्कि मर्द है। उसके साथ धोखाधड़ी हुई है। पीड़ित शख्स ने इस मामले में न्याय दिलाने के लिए SC में अर्जी दाखिल की है।

SC शुक्रवार को पीड़िता की याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हो गया कि निश्चय ही कथित पत्नी पर धोखाधड़ी के लिए आपराधिक मुकदमा चलाया जाना चाहिए, क्योंकि उसके पास पुरुष जननांग हैं।

सबसे पहले यह मामला मई 2019 में सामने आया था। तब ग्वालियर के एक मजिस्ट्रेट ने पीड़ित द्वारा दायर शिकायत पर उसकी कथित पत्नी के विरूद्ध धोखाधड़ी के आरोप पर संज्ञान लिया था। पीड़ित का आरोप है कि उसकी शादी 2016 में हुई थी, लेकिन शादी के बाद उसे पता चला कि उसकी पत्नी औरत नहीं, ब्लकि अंदर से एक आदमी है।

उसका कहना है कि जिसके साथ मेरी शादी हुई उसके पास पुरुष जननांग हैं। यानी वो इस शादी के लिए पूरी तरह से अक्षम है। उन दोनों के बीच शारीरिक संबंध नहीं बन सकते हैं। पीड़ित ने कथित पत्नी और उसके पिता के विरूद्ध एफआईआर दर्ज कराने के लिए अगस्त 2017 में मजिस्ट्रेट से संपर्क किया था।

पीड़ित ने जब कोर्ट में पत्नी की मेडिकल रिपोर्ट पेश की तो उसमें पता चला कि उसकी पत्नी के पास एक लिंग और अविकसित हाइमन है। अविकसित हाइमन एक जन्मजात विकार है। यह योनि को बाधित करता है। पीड़ित के वकील सीनियर एडवोकेट एनके मोदी ने बेंच को बताया कि भारतीय दंड संहित की धारा 420 के तहत यह एक आपराधिक मामला है, क्योंकि पत्नी एक पुरुष निकली है।
ज्ञात करा दें कि इससे पहले यह मामला जून, 2021 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें धोखाधड़ी के आरोपों पर संज्ञान लेते हुए पत्नी को सम्मन जारी किया गया था। इसके बाद पीड़ित के वकील मोदी हाईकोर्ट के इसी आदेश के विरूद्ध SC पहुंचे। उन्होंने बेंच के सामने दलील दी कि पीड़ित के पास पर्याप्त सबूत हैं, जो साबित करते हैं कि अपूर्ण हाइमन के कारण उसकी पत्नी को महिला नहीं कहा जा सकता है।