गुना से हुआ मोह भंग, ग्वालियर से चुनाव लड़ने की तैयारी में 'महाराज'?

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया बीते कुछ दिनों से जिस तरह से ग्वालियर में सक्रिय हैं, उससे राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है. राजनीति के जानकार मान रहे हैं कि गुना से 'महाराज' का मोह भंग हो गया है, और सिंधिया परिवार की सियासत का केंद्र रहे ग्वालियर से वह चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं.

गुना से हुआ मोह भंग, ग्वालियर से चुनाव लड़ने की तैयारी में 'महाराज'?

मध्य प्रदेश के साथ-साथ ग्वालियर चंबल अंचलमें केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया  लगातार सुर्खियों में हैं. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी  का दामन थामने बाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को वह सब कुछ मिल गया जो चाहते थे. और यही वजह है कि वह इस समय ग्वालियर चंबल अंचल में अपना पुराना रुतबा कायम करने की जुट में लगे हुए हैं.

अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर चंबल अंचल में बैक-टू-बैक दौरा कर रहे हैं. वह लगातार सामाजिक कार्यों के साथ-साथ शहर हर कार्यक्रम भाग ले रहे हैं. अनुमान लगाया जा रहा है कि इसी के बहाने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर में अपनी राजनीतिक जमीन भी तलाशने लगे हैं.

अब राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा होने लगी है कि आने वाले समय में सिंधिया गुना से नहीं, बल्कि ग्वालियर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे. यही वजह है कि अब ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर में विभिन्न जातिगत समाज के प्रमुख लोगों से मुलाकात कर रहे हैं और जो उनके धुर विरोधी थे उनके घर भी जा रहे हैं.

गुना सीट हारने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की ग्वालियर लोकसभा सीट पर नजर है. माधवराव सिंधिया  के निधन के बाद से उनकी परंपरागत सीट गुना पर उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया जीतते रहे हैं. लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर ने कांग्रेस के इस अभेद किले को भी ढहा दिया था. ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा प्रत्याशी केपी सिंह यादव के हाथों पौने दो लाख मतों के भारी अंतर से हार गए. इसके बाद से ही उनका गुना क्षेत्र में मोहभंग हो गया.

हार के कई महीने तक वो वहां गए ही नहीं. बाद में वह अपने समर्थकों के साथ भाजपा में चले गये और कमलनाथ की सरकार गिर गई. भाजपा ने उन्हें राज्यसभा भेजकर केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाया और इसके बाद उन्होंने लगातार ग्वालियर में अपनी सक्रियता बढ़ाई और जातिगत वोटों को साधने में जुट गए हैं. वह जैन समाज, मराठा समाज के साथ ही विगत दिनों ब्राह्मण सम्मेलन में भाग लेने गए.

इससे सियासत के गलियारों में उनके ग्वालियर से चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है. उनके समर्थकों में उत्साह है, वहीं भाजपा में चिंता है क्योंकि इस सीट पर लंबे अरसे से भाजपा का कब्जा रहा है. अभी भी यहां से भाजपा के खांटी नेता विवेक शेजवलकर सांसद हैं.

केंद्रीय मंत्री बनने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया लगातार ग्वालियर चंबल अंचल में सक्रिय नजर आ रहे हैं. खासकर ग्वालियर शहर में वह लगातार उन लोगों से मुलाकात कर रहे हैं, जो कभी उनके धुर विरोधी रहे. ज्योतिरादित्य सिंधिया अलग-अलग जातियों के प्रमुख लोगों से मुलाकात कर रहे हैं. साथ ही शहर में होने वाले अलग-अलग संगठन के लोगों से संपर्क साधने में लगे हुए हैं.

सबसे खास बात यह है कि जो कभी सिंधिया परिवार के धुर विरोधी रहे जैसे पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा, पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया समेत ऐसे कई नेता हैं जिनके पास खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया जाकर मुलाकात कर रहे हैं. इससे साफ जाहिर हो रहा है कि अब केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर लोकसभा सीट पर नजर बनाए हुए हैं और यही वजह है कि 2024 आते-आते सिंधिया अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने में लगे हुए हैं.

इसी कड़ी में पूर्व मंत्री और सिंधिया परिवार के धुर विरोधी रहे अनूप मिश्रा ने ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसमें मुख्य अतिथि के तौर पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल हुए.

सिंधिया परिवार के लिए ग्वालियर सदैव से ही सियासत का केंद्र रहा है. देश आजाद होने के बाद राजमाता विजयराजे सिंधिया पहले कांग्रेस फिर जनसंघ और भाजपा की सियासत की डोर अपने हाथ में रखती थीं. इसी के चलते उनके बेटे और सिंधिया रियासत के महाराज माधवराव सिंधिया लंदन से पढ़ाई करके वापस भारत लौटे तो राजमाता ने 1972 में उन्हें जनसंघ ज्वॉइन करवाया और अपने परंपरागत गुना संसदीय क्षेत्र से उन्होंने लोकसभा के चुनाव में शानदार जीत हासिल की.

सबसे कम उम्र के सांसद के रूप में जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचे. लेकिन सिंधिया का मन अपनी मां की पार्टी में ज्यादा दिन नहीं लगा और 1977 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो उन्होंने जनसंघ छोड़ दी और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे. कांग्रेस ने उनके खिलाफ अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं किया और जब पूरे उत्तर भारत में कांग्रेस साफ हो गई थी, लेकिन सिंधिया ने शानदार जीत हासिल की थी. कुछ समय बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए. महज 19 महीने में जनता पार्टी सरकार गिर गई, 1980 में मध्यवर्ती चुनाव में सिंधिया कांग्रेस के टिकट पर लड़े और शानदार जीत हासिल की.

1984 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की हत्या के बाद राजीव गांधीपीएम बने और आम चुनाव की घोषणा हो गई. तब ग्वालियर की सियासत में नाटकीय घटनाक्रम हुआ. भाजपा ने ग्वालियर से अपने शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी को मैदान में उतारा. उनकी जीत सुनिश्चित थी लेकिन नामांकन के अंतिम क्षणों में राजीव गांधी माधवराव सिंधिया को ग्वालियर भेजकर वाजपेयी के खिलाफ मैदान में उतार दिया.

यह घटनाक्रम बहुत गोपनीय था. इस चुनाव में भाजपा को उनके ही स्थान में करारी हार का स्वाद चखना पड़ा. बाद में राजीव गांधी ने सिंधिया को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर रेल मंत्री बनाया. इसके बाद सिंधिया ने यहां से लगातार पांच बार जीत हासिल की. एक समय ऐसा भी आया जब हवाला मामले में नाम आने पर सिंधिया को कांग्रेस छोड़नी पड़ी. वह अपनी नवगठित मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस के बैनर पर निर्दलीय चुनाव लड़े, जिसके बाद भाजपा ने अपने प्रत्याशी को मैदान से हटा लिया था और सिंधिया ने शानदार जीत हासिल की.