युद्ध के साए में

डॉ मीता अग्रवाल मधुर

युद्ध के साए में

  युद्धों की छाया जी रही है  दुनिया
न सिर्फ़ जी रही , बल्कि जीतती भी रही , 
हर आदमी की  अपनी एक लड़ाई  है, 
कई लड़ाइयाँ ऐसी भी हैं, जो सामूहिक  सृष्टि के माथे पर, 
मनुष्य जाति के माथे पर थोप दी गई, 
ऐसे ही कुछ युद्धों को हम भोग रहे हैं। 
संसार युद्ध के साये में जी रहा, 
 बिना किसी अनुभूति और विचलन के,
यद्यपि  
प्रभाव भोग  रहे हैंसभी l
 मनुष्य लगातार युद्धों का भोक्ता रहा और जन्मदाता भी। 
किसी एक की करनी का फल पूरी जाति को भोगना पड़ता है, 
यूक्रेन भी रौंदा जा रहा है कुछ महत्वाकांक्षाओं और ज़िदों के पैरों तले। 
यह युद्ध थम भी जाए, 
तो सदियों रहेंगे 
इसके निशान और असर। 
बस! नहीं चेतेगा तो मनुष्य।
 मानवता दया - करुणा, आत्मीयता के बीच
 मनुष्य का ही
 ऐसा विकृत चेहरा भी  जो डराने वाला है। बावजूद 
मनुष्य जाति के किसी अंश में  मनुष्यता बाकी है,
 यद्यपि 
मनुष्य अभिशप्त है युद्ध में जीने के लिए। 
युद्ध भी अपना प्रकार स्वयं चुनता है और अपने लिए व्यक्ति भी। 
जब-जितनी भी लड़ाइयाँ अस्त्रों -शस्त्रों और हथियारों से लड़ी गईं, नुकसान सदैव 
मनुष्यता का हुआ , 
जीत जिस देश या व्यक्ति को मिली हो, 
किन्तु हारी तो मनुष्यता ही। 
 बर्बरता, निर्ममता, बहशीपन और क्रूरता के प्रामाणिक किस्से, 
 लड़ाइयों के  हजारों उदाहरण बिखरे पड़े है,  वियतनाम, अफगानिस्तान , यूक्रेन। 
 दूसरी ओर जब-जब किसी आततायी, अत्याचारी अथवा अन्याय के खिलाफ अहिंसक संघर्ष किया गया, 
तो न सिर्फ न्याय, मानवता और सत्य के पक्ष की जीत हुई, 
आपसी सम्मान को पालने व जीवित रखने वाली संस्कृति को भी पनपने - बढ़ने का अवसर दिया , भारतीय स्वतंत्रता का आंदोलन, दक्षिण आफ्रीका का स्वतंत्रता संघर्ष साक्ष्य हैं, 

युद्ध कोई भी हो, 
अंततः जीत हमेशा सत्यनिष्ठ संकल्प वाले अहिंसक पक्ष की होती है। अहिंसक संघर्ष  मानवता  पक्षधर होते हैं।
 ये मनुष्यता को नुकसान नहीं, 
हमेशा मनुष्य - मनुष्य के बीच
 एकता, आत्मीयता और समानता का भाव पैदा करने वाले होते हैं।
 हथियारों से लड़ी जाने वाली लड़ाइयाँ 
 अन्याय और अनाचार का विरोध भी अहिंसक तरीके से हो। 
मनुष्य लोभ-लालच से बचकर रहे,
 तो मनुष्य भी बचा रहेगा और मनुष्यता भी।