छत्तीसगढ़ में अब 8वीं क्लास तक स्थानीय बोली में होगी पढ़ाई

छत्तीसगढ़ के मिडिल क्लास तक अब स्थानीय बोली में पढ़ाया जाएगा. सर्वे के आधार पर ये फैसला लिया गया है.

छत्तीसगढ़ में अब 8वीं क्लास तक स्थानीय बोली में होगी पढ़ाई

छत्तीसगढ़ के प्राथमिक और मिडिल स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के घर में बोले जाने वाली भाषा का सर्वे किया गया. सर्वे के आधार पर बच्चों की पढ़ाई के लिए नई योजना तैयार की जा रही है. इसके तहत अब आठवीं कक्षा तक के बच्चे अपनी स्थानीय बोली में पढ़ाई कर सकेंगे. इसके लिए एससीईआरटी की तरफ से पुस्तकें तैयार की जा रही है. नए शिक्षा सत्र से सभी स्कूलों में यह किताब पहुंचा दी जाएगी. एससीईआरटी के निर्देश के बाद प्रधान पाठकों ने भाषाई सर्वे कराया था.

सर्वे के पहले प्राथमिक स्कूल के प्रधान पाठकों को प्रशिक्षण देकर सर्वे के संबंध में विस्तार से जानकारी दी गई. इसके बाद प्रदेश भर में यह सर्वे कराया गया. स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों की माने तो स्कूलों में बच्चों को हिंदी में पढ़ाया जाता है, लेकिन बच्चे अपनी मातृभाषा में बात करते हैं. इससे दूरस्थ अंचलों के बच्चों को पढ़ने में कठिनाई होती है. इस कठिनाई को दूर करने के लिए ही राज्य के कई क्षेत्रों में स्थानीय भाषा पर आधारित द्विभाषायी पुस्तकें बच्चों को दी गई है. इसका किस तरह से रिस्पांस मिल रहा है. उसी का सर्वे एससीईआईटी की ओर से किया गया.

विभागीय अधिकारी बताते हैं कि 'भाषाई सर्वे के लिए बिंदुवार प्रपत्र तैयार किया गया है. यह प्रपत्र कक्षा पहली के क्लास टीचर की तरफ से भरा गया. इस प्रपत्र को भरने के लिए स्कूल का यू-डाइस कोड, कक्षा में शिक्षण के माध्यम के रूप में उपयोग की जाने वाली भाषा को समझने और बोलने की विद्यार्थियों की क्षमता, विद्यार्थियों के घर की भाषा और विद्यार्थियों के घर की भाषा को समझने और बोलने की क्षमता पर ध्यान दिया गया. प्रपत्र को भरने से पहले विद्यार्थियों की सूची तैयार की गई. जिसमें हर बच्चे के नाम के आगे उसके घर की भाषा लिखी गई है. इस सूची को कक्षा के रजिस्टर में भी दर्ज किया गया है.

15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस सरकार स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए संघर्षरत है. इसी तारतम्य में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्कूल शिक्षा विभाग को निर्देश दिए थे कि स्थानीय बोली में बच्चों को शिक्षा दी जाएं. इसके बाद एससीईआरटी ने 2020 में पहली से दूसरी कक्षा तक के बच्चों के लिए सहायक पुस्तिका द्विभाषायी तैयार की थी. इसमें हिंदी के साथ ही स्थानीय बोलियों पर किताब प्रकाशित की गई है. ताकि बच्चे हिंदी भाषा को समझ सके और उन्हें पढ़ाई करने में कठिनाई ना हो. भाषाई सर्वे के बाद अब इसे 8वीं कक्षा तक पढ़ाने की तैयारी की जा रही है.

एससीईआरटी के संयुक्त संचालक योगेश शिवहरे (Yogesh Shivhare Joint Director of SCERT) बताते हैं 'मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ पहला ऐसा राज्य है. जिसने स्थानीय बोली, भाषा पर इतने वृहद स्तर पर काम किया है. हमने पिछले 2 सालों से पहली और दूसरी कक्षा के हिंदी भाषा को भी भाषा बनाया है. द्विभाषी का मतलब किताब के लेसन में एक पेज पर स्थानीय बोली में कंटेंट और दूसरे पेज पर उसका हिंदी में अनुवाद है. इससे बच्चा पहले अपने स्थानीय भाषा में पढ़ाई शुरू करता है. घर में उसी बोली को बोलने के कारण बच्चे को उसे पढ़ने और बोलने में आसानी होती है. ऐसे में बच्चे उसका हिंदी अनुवाद भी आसानी से समझ जाते हैं. पिछले 2 सालों से बच्चे इसी तरह पढ़ रहे हैं. टीचर्स और फील्ड के अधिकारियों से जो फीडबैक मिल रहा है. वह बहुत ही अच्छा है. उसी से उत्साहित होकर हम दूसरी कक्षा से बढ़ाकर इसे आठवीं क्लास तक कहानियों के पुस्तक तैयार कर रहे हैं'.

वर्तमान में प्रदेश में बच्चे छत्तीसगढ़ी, दूरली, हल्बी, भतरी, धुरवी, गोंडी, सादरी, कमारी, कुडुख, बघेली, सरगुजिया, बैगानी, माड़िया के अलावा अंतरराज्यीय भाषाओं में उड़िया, बंगला, मराठी और तेलुगु में किताबें पढ़ रहे हैं. इन भाषाओं में पहली व दूसरी कक्षा के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं.