डाँ.चोलेश्वर चंद्राकर ने राष्ट्रीय सम्मेलन पुणे महाराष्ट्र में रिसर्च पेपर प्रस्तुत कर सहभागिता दी

*7 वा वार्षिक राष्ट्रीय सम्मेलन में डाँ. चौलेश्वर चंद्राकर ने पुणे महाराष्ट्र में रिसर्च पेपर “छत्तीसगढ़ का मदकूद्वीप:पुरातत्वीय धरोहर एवं धार्मिक आस्था का केंद्र “का वाचन कर देश भर के इतिहास कार एवं पुरातविदों को छत्तीसगढ़ का मदकूद्वीप में आने का न्योता भी दिया । *शोध पत्र में लिखा है कि नवनिर्मित छत्तीसगढ़ प्रदेश प्राचीन काल में दक्षिण कोशल के नाम से जाना जाता था। इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति का त्रिवेणी संगम यहाँ के स्मारको में दृष्टव्य है।पुरानी परंपराओं के साथ यहाँ का धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत भी अनूठी है जिनके कारण भारत वर्ष में छत्तीसगढ़ की विशिष्ट पहचान है स्थापत्य कला को उजागर करने के साथ साथ हमारे प्रदेश का नाम रोशन कर रहे है नवीन राज्य निर्माण के पूर्व यह मध्यप्रदेश का अंग था मदकूद्वीप शिवनाथ नदी के प्रवाह से मेखला के सदृश्य चारों ओर से परिवृत्त मदकुद्वीप महत्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल है।यह स्थल जिला मुंगेली के छत्तीसगढ़ में स्थित है । शिवनाथ नदी की धारा में मध्य स्थित लगभग २४ हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तृत यह पर्वताकार संरचना एक द्वीप के समान दिखाई देती है प्रागैतिहासिक काल में शिवनाथ नदी के तटवर्ती क्षेत्र में आदि मानवो के संचरण के प्रमाण मिलते है । मद्कुद्वीप के आस पास मध्य पाषाण युगीन विधिक पाषाण उपकरण खोजे गए है जिससे आदिमानवो के गतिविधियों का परिचय मिलता है इस स्थल के ऐतिहासिक काल पर प्रकाश डालने वाले विवरणों में इंडियन इपिग्राफ़ी वर्ष 1959 -60 के प्रतिवेदन मे यहाँ मदकूघाट से प्राप्त अवशेष शिलालेखो कि उल्लेख है । दूसरा शिलालेख शंक लिपि में है । शिवनाथ नदी को धीर और गंभीर नदी है बताया गया है। इसके तटवर्ती अनेक स्थलों से ऐतिहासिक महत्व के प्राचीन राजवंशों के सिक्के अभिलेख मिट्टी के प्रकार तथा परिखायुक्त गढ़ एवं मंदिरों के भग्नवाशेष ज्ञात हुए है ।इस स्थल को हरिहर क्षेत्र केदार द्वीप के रूप में प्रसिद्ध है इस स्थल को श्री शांता राम श्राफ, आचार्य रमेंद्र नाथ मिश्रा ,पंडित कृपा राम गौराहा , विष्णु ठाकुर दीपक शर्मा सहित अन्य विद्वजनों ने भ्रमण कर मदकूद्वीप में उत्खनन करने वाले स्व.अरुण शर्मा , प्रभात सिंह , राकेश चतुर्वेदी , राहुल सिंग एवं अन्य छत्तीसगढ़ पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा उत्खन कार्य हुआ।उत्खनन कार्य से प्राप्त कल्चुरी शासक प्रताप मल्लदेव का ताम्रसिक्का प्रतिमाएं एवं शिवलिंग विशेष महत्वपूर्ण है ।एक ही वेदों पर संयुक्त रूप से निर्मित पाँच शिवलिंग युक्त 12 स्मार्त लिंग की उपलब्धि से तत्कालीन शैव परम्परा पर प्रकाश पड़ता है मदकुद्वीप का प्राकृतिक सौंदर्य विद्यमान पुराततिव्य धरोहर एवं धार्मिक आस्था का यह केंद्र स्थल है । मदकूद्वीप में स्थापित शिव लिंग को धूमनाथ के नाम से प्रसिद्ध है मद्कुद्वीप के महात्म्य नामक पुस्तक में भी इस स्थल के शिव लिंग को धूमनाथ कहा गया है । मांडुक्य द्वीप यह प्राचीन नाम था जो कि वर्तमान में मदकूद्वीप कहलाता है l मांडुक्य ऋषि ने यही पर मूडकोप निषद की रचना की है। इसी उपनिषद के तीसरे अध्याय के प्रथम मुंडक, छठवे श्लोक में “सत्यमेव जयते “ का उद्घोष मांडुक्य ऋषि की तपोस्थली भगवान राम का आगमन , विश्व का प्राचीनतम एवं भारत का एकमेव स्मार्त लिंग , अष्टभुजी श्री गणेश मंदिर धूमनाथ महादेव , नौका विराजित श्री सीताराम जी एवं लक्ष्मी नारायण मंदिर संत रामस्वरूप दास महात्यागी जी का आश्रम भी है छत्तीसगढ़ के लिए गौरव की बात है जिस सत्यमेव जयते की पहचान है वह छत्तीसगढ़ की इस पावन भूमि से उद्घोषित हुआ है।यह शोध पेपर डा.चौलेश्वर चंद्राकर ने पुणे महाराष्ट्र के डेक्कन डीन विश्वविद्यालय में अपना आलेख का वाचन किया है तीन दिवसीय 7 वा सम्मेलन में देश भर के कोने कोने से विषय विशेषज्ञ कुलपति, प्राध्यापक गण कुल गुरु शामिल हुए हैं जिसने प्रमुख रूप से दिल्ली के आईसीएसएसआर के चेयरमैन श्री धनंजय सिंह श्री कृष्णा भट्ट कुलपति उड़ीसा , राजकुमार भाठिया, ए डी एन बाजपेयी कुलपति अटल बिहारी बाजपेयी विश्वविद्याल बिलासपुर , जोशी डेक्कन कॉलेज , श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी, बसंत शिंदे, प्रो.सुरेंद्र कुमार अर्थशास्त्री दिल्ली विश्वविद्यालय, सदानंद मोरे दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर सहित सैकड़ो विद्वान जन शामिल हुए ।