बर्खास्त कर्मचारियों की बहाली पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने लगाई रोक

जिला सहकारी केंद्रीय बैंक बिलासपुर के 110 बर्खास्त कर्मचारियों की बहाली के हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के फैसले को डिवीजन बेंच ने रद्द कर दिया है। डिवीजन बेंच ने यह भी निर्देश दिया है कि बैंक प्रबंधन अब संबंधित कर्मचारियों की बात सुनकर यह तय करेगा कि उन्हें दोबारा नौकरी पर रखा जाए या नहीं।
2015 की भर्ती घोटाले से जुड़ा है मामला
यह पूरा मामला वर्ष 2015 में जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में हुई अनियमित भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा है। आरोप है कि तत्कालीन अध्यक्ष देवेंद्र पांडे के कार्यकाल में बिना उचित प्रक्रिया और पात्रता के पिछले दरवाजे से भर्ती की गई। कई ऐसे अभ्यर्थियों को नौकरी दी गई जिन्होंने परीक्षा तक नहीं दी थी। इंटरव्यू में अपने लोगों को बुलाकर हाई नंबर देकर चयन कर लिया गया। इन भर्तियों में भारी लेनदेन के आरोप भी सामने आए थे।
प्रशासक कलेक्टर ने सभी 110 भर्तियां की थीं रद्द
भर्ती प्रक्रिया में अनियमितताओं की शिकायत के बाद जिला कलेक्टर, जो उस समय बैंक के प्रशासक भी थे, ने सभी 110 भर्तियों को रद्द कर दिया था। इसके बाद बैंक प्रबंधन ने भी इन बर्खास्तियों को उचित ठहराया।
29 कर्मचारियों ने कोर्ट में दी थी चुनौती
बर्खास्त कर्मचारियों में से 29 ने हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में याचिका दाखिल की थी। 2015 में जस्टिस ए.के. प्रसाद की सिंगल बेंच ने उन्हें बिना बकाया वेतन के बहाल करने का आदेश दिया था। आदेश के बाद कर्मचारी जॉइनिंग के लिए बैंक पहुंचे थे लेकिन प्रबंधन ने उन्हें ज्वाइन नहीं करने दिया, जिससे विवाद खड़ा हो गया था।
CEO और कलेक्टर ने फैसले को दी थी चुनौती
सिंगल बेंच के आदेश को बैंक के मुख्य कार्यपालन अधिकारी और कलेक्टर (प्राधिकृत अधिकारी) ने चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में अपील दायर की। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की बेंच ने सुनवाई के बाद सिंगल बेंच का फैसला निरस्त कर दिया।
तीन महीने में तय करें भविष्य – कोर्ट का निर्देश
डिवीजन बेंच ने यह भी कहा कि जिन कर्मचारियों ने याचिका दायर की है, बैंक प्रबंधन उन्हें सुनकर तय करे कि वे नौकरी पर रहेंगे या नहीं। इसके लिए कोर्ट ने तीन महीने की समय सीमा तय की है।
इस फैसले से साफ हो गया है कि बिलासपुर सहकारी बैंक भर्ती घोटाले में संलिप्त कर्मचारियों की बहाली स्वचालित रूप से नहीं होगी, बल्कि बैंक प्रबंधन को अब उनके पक्ष में तटस्थ और न्यायसंगत निर्णय लेना होगा। यह फैसला छत्तीसगढ़ में सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं की पारदर्शिता को लेकर भी एक अहम संकेत माना जा रहा है।