महिला आयोग के कार्यों को सरलतापूर्वक संचालित करने के लिए कलेक्ट्रेट में एक कमरा हुआ आरक्षित आवेदिका पुत्री पटवारी पिता के विरुद्ध कर सकती हैं कलेक्टर से शिकायत पट्टे की जमीन हड़पने का मामला-कलेक्टर ने कहा बिना अनुमति जमीन बेचना अमान्य

महिला आयोग के कार्यों को सरलतापूर्वक संचालित करने के लिए कलेक्ट्रेट में एक कमरा हुआ आरक्षित  आवेदिका पुत्री पटवारी पिता के विरुद्ध कर सकती हैं कलेक्टर से शिकायत  पट्टे की जमीन हड़पने का मामला-कलेक्टर ने कहा बिना अनुमति जमीन बेचना अमान्य

  अम्बिकापुर / छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक एवं सदस्य  नीता विश्वकर्मा ने कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में जनसुनवाई की। जनसुनवाई के लिए सरगुजा जिले के 20 विभिन्न मामलों के प्रकरण रखे गए जिसमे से 11 प्रकरणों को निपटाकर नस्तीबद्ध किया गया। आयोग की मांग पर कलेक्टर  संजीव कुमार झा ने तत्काल  महिला आयोग के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग कार्यालय में एक कमरा आरक्षित करने के निर्देश दिए। सुनवाई में जिला सीईओ श्री विनय कुमार लंगेह, एसपी  भावना गुप्ता,  शमीम रहमान अधिवक्ता, जिला पंचायत की सदस्य  मधु सिंह, जिला प्रभारी  एमएल यादव, महिला बाल विकास के जिला कार्यक्रम अधिकारी  बसंत मिंज तथा अन्य अधिकारी कर्मचारी उपस्थित थे।

          एक प्रकरण में आवेदिका को शासन से पुर्नवास में पट्टा जमीन प्राप्त है, जिस पर अनावेदक द्वारा ताला बंद कर दिया गया है जिसे अनावेदक ने मात्र 20 हजार रू. देकर आवेदिका के पट्टे की जमीन को हड़पने की मंशा रखते थे। अनावेदक ने बताया की जमीन की बिक्रीनामा में लिए जो कार्यालय कलेक्टर में आवेदन लंबित है । सुनवाई के दौरान कलेक्टर महोदय ने जानकारी दिया की बिना अनुमति जमीन बेचना अमान्य होता है ।  आयोग की सदस्य नीता विश्वकर्मा इस प्रकरण की निगरानी करेंगी ।

       एक अन्य प्रकरण में आवेदिका ने बताया की मेरे पति की मृत्यु हो गई है जिससे एक पुत्री भी है मेरे देवर ने मुझे शादी का आश्वासन  देकर दैहिक शोषण करता था और मेरे साथ रहता था जिससे दो बच्चे भी हो गये अब वह मुझे साथ रखने से इन्कार कर रहे हैं। अनावेदकगण ने  बताया की तीनो बच्चो की परवरिश हमलोग कर रहे है और आवेदिका को रहने के लिए मकान भी दिये हैं। दोनो पक्षों के मध्य ग्राम समाज में आपसी राजीनामा का पंचनामा तैयार किया गया है जिसके दस्तावेज आयोग की सुनवाई में प्रस्तुत किये हैं। दस्तावेज के अनुसार दोनो पक्ष अपने जीवन यापन करने के लिए स्वतंत्र है यह निर्णय समाज में हुआ है। आयोग ने अनावेदकगणो को जिम्मेदारी दिया है कि तीनो बच्चों का पालन-पोषण करेेगे तथा आवेदिका के जीवन में किसी प्रकार में दखलंदाजी नहीं करें और आवेदिका भी अनावेदकगण के विरूद्ध भी दखलंदाजी नही करेंगे। इस प्रकरण को नस्तीबद्ध किया गया।

      एक अन्य प्रकरण में आवेदिका की पुत्री जो कि 12वी कक्षा में अध्यनरत है अनावेदक पटवारी है जिसका लगभग 42 हजार प्रतिमाह है। साथ ही अनावेदक दो-तीन बार संस्पेड हुआ है जिसके कारण उसे प्रतिमाह 35 हजार रूपये वेतन मिल रहा है। अनावेदक अपनी पुत्री को पढ़ाई लिखाई के लिए कोई भी राशि नहीं देता है। इस स्तर पर अनावेदक के वेतन से पुत्री के पढ़ाई लिखाई के लिए अनावेदक के वेतन से 5 हजार रुपये प्रतिमाह काट कर आवेदिका के खाते में दिए जाने के निर्देश आयोग ने दिये। आवेदिका के भरण-पोषण का प्रकरण न्यायालय में भी विचाराधीन है। आवेदिका के भरण -पोषण का निराकरण न्यायालय से होेगा। सुनवाई के दौरान आयोग के द्वारा यह पाया गया कि अनावेदक शासकीय सेवा में कार्यरत है और अपनी पहली पत्नी से तलाक लिए बिना दुसरी शादी किया गया है। इस विवाह से इससे दो संतान है जिसके पालन -पोषण की जिम्मेदारी आवेदिका पर ही है। अनावेदक के शासकीय अभिलेख में आवेदिका पत्नी और पुत्री का नाम दर्ज किया जावे अनावेदक ने स्वीकार किया कि दोनो बच्चो का नाम शासकीय अभिलेख मे दर्ज है। जबकि आवेदिका का कहना है कि कोई नाम दर्ज नही है इस प्रकरण की जॉच के लिए अनावेदक की पुत्री को कलेक्टर से शिकायत करने का अधिकार दिया गया है। आयोग ने आवेदिका की पुत्री को कहा की आदेश की प्रतिलिपि के साथ कलेक्टर सरगुजा को लिखित शिकायत देकर अनावेदक द्वारा बिना तलाक लिए दूसरा विवाह कर शासकीय नियमों का उलंघन किया है जिससे अनावेदक की सेवा समाप्ति भी हो सकती है। इस प्रकार प्रकरण को नस्तीबद्ध किया गया ।
      एक अन्य प्रकरण में आवेदिका ने बताया कि उनका मंदिर समिति के सदस्यों द्वारा किसी भी प्रकार से व्यवस्था नही किये थे उन्होने अपशब्दों का प्रयोग किया जिससे मेरे मान सम्मान को ठेस पहुॅची जिसके कारण मै आयोग में शिकायत दर्ज की हूँ। आयोग की सुनवाई में दोनो पक्षों को विस्तार से सुना गया दोनो पक्षो के मध्य इस प्रकरण के निराकरण के लिए परियोजना अधिकारी महिला बाल विकास विभाग को दोनो पक्षो को मंदिर में जाकर दर्शन कराकर एक दूसरे के मध्य सामंजस्य बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी मंदिर में दोनो पक्षों ने एक दूसरे से क्षमा मांगी आयोग की सुनवाई में ही इस प्रकरण का निराकरण किया गया।