साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

प्रदीप नायक प्रदेश अध्यक्ष सदगुरु कबीर सेना छत्तीसगढ़

साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

मेरे नाना जी जब मेरी तरफ से निराश हो गए,तब वे  अयोध्या गए। राम-लक्ष्मण को लाकर अपना दिव्यास्त्र एवं देवास्त्र प्रदान किए। वे हार नहीं मानने वाले--अद्वितीय पराक्रमी सद्गुरु थे। जब उन्होंने राम से शिव का धनुष भंग कराया ,उस समय मैं गंधमादन पर्वत पर था। उसके आवाज से मैं विचलित हो गया। सोचा कि कहीं सहस्त्रार्जुन के वंशज जय शिव धनुष तोड़ कर मुझे चुनौती तो नहीं दे रहे हैं। क्या करूं मेरे रक्त में दादी मां का क्षत्राणी का रक्त भरा था। पूर्णरूपेण ब्रह्मण धर्म में अपने को विसर्जित नहीं कर पाया था। अतएव विमान पर चढ़कर जनकपुर चला आया। क्रोध में व्यक्ति का विवेक खो जाता है। मेरा कर्तव्य था कि मेरे श्रद्धेय-पूज्य नाना जी बैठे हैं। उन्हें दंड-प्रणाम करूं। उनसे स्थिति के बारे में पूछूं। ऐसा नहीं हो पाया। मेरे क्रोधाग्नि में पुरोधा वर्ग आग में घी डाल दिया। मेरे पहुंचते ही मेरी जय-जय होने लगी। मैं भला-बुरा कह डाला। परंतु सद्गुरु विश्वामित्र के भय से बहुत देर तक प्रति-उत्तर कोई नहीं दिया। सद्गुरु अपने नजदीकी लोगों के अहंकार को धोता रहता है। उनके इशारे पर राम-लक्ष्मण ने मेरे अहं को धो डाला। मेरी प्रज्ञा चक्षु खुल गया। मैं राम-लक्ष्मण सीता को सहसा पहचान लिया। इनके निर्माता सद्गुरु को भी पहचान लिया। मैं सद्गुरु विश्वमित्र के चरणों , राम-लक्ष्मण के चरणों में नमन करते हुए वापस आ गया। मेरा अहंकार सदा के लिए धुल गया। पश्चाताप की अग्नि को शांत करने हेतु सीधे पश्चिमी-तट पर चला गया। जहां आप स्वामी जी हमसे मिलने गए थे।

        प्रभास क्षेत्र में जाकर कमर भरे जल में खड़े होकर तप करने लगा।रास्ते भर यही सोचते हुए गया कि काश मैं अपने नाना जी का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया होता तो आज पृथ्वी का इतिहास कुछ और होता। धनुष भंग होते ही पृथ्वी के सारे पुरोधा वर्ग विश्वमित्र के साथ हो गए। सभी का एकाएक राग बदल गया। कल तक जो विश्व का अमित्र था आज एकाएक विश्व का मित्र हो गया। विश्वमित्र का यह शक्ति परीक्षण संपूर्ण विश्व को हिला कर रख दिया। अवसर पाते ही पुरोधा वर्ग गुणगान करना शुरू कर दिया। दूसरे तरफ देवता-दानव संस्कृति में हड़कंप मच गया। सभी चिंतित हो गए। अंत तक सदगुरु विश्वमित्र पूरे विश्व का चाल-चरित्र-चिंतन बदल कर रख दिए। माध्यम बने राम।प्रतिष्ठा आदर्श एवं मर्यादा के मूर्ति राम बन गए। उस मूर्ति को गढ़ने वाला, अपने निर्मम हाथों से छेनी व हथौड़ी चलाने वाला, उसके अंदर से सुंदरतम प्रतिमा निकालने वाले हैं---विश्वमित्र यही सद्गुरु का काम है।

      जीवन में प्रथम बार नाना जी के उपस्थिति में, जो असंभव था, मुझे सदमा लगा। मैं अंदर-बाहर से हिल गया। वहां से सीधे प्रभास क्षेत्र पहुंच गया। जहां भगवान सोमनाथ हैं। उनके छत्रछाया में कमर भर पानी में खड़ा होकर तप करने लगा। खारे जल में मन सारा अवसाद को बाहर कर दिया। मेरी तप स्थली पर आप इस वर्ष तो गए ही थे स्वामी जी।

        भगवान शंकर मेरे गुरु थे। चूंकि गुरु कश्यप के यहां जा नहीं सकता था। उनका आदेश था कि तुम शंकर के शरण में रहो। उन्हीं के रूप में मैं तुझे ज्ञान दूंगा। अतएव गुरु आज्ञा पालन मेरा परम कर्तव्य था। मां पार्वती मेरी गुरु मां है। मेरी परम पूज्या है।

      तपस्वी की आयु बढ़ती जाती है।यह पार्थिव शरीर भी समय का बंधन तोड़ देता है।परंतु ज्ञानी जन इस शरीर से मोह उत्पन्न होने के भय से इसे भी वस्त्र की तरह परित्याग कर देते हैं। यह शरीर इतना जाना-पहचाना हो जाता है कि आत्म शरीरी व्यक्ति भी अपने संकल्प शक्ति से उसी शरीर की आकृति धारण कर लेते हैं।

क्रमशः…..