मैं कविता हो गई
श्यामा चन्द्राकर मोना✍️ रायपुर छत्तीसगढ़
मेरे हृदयतल से निकली वो कविता हो गई
निर्मल पावन मेरी जीवन की सरिता हो गई
शब्द-शब्द ढूंढ़ती रहती हूं मैं असीमित हो गई
मन के भावों को लय में पिरोकर माला हो गई
दरिया बहुत है भावों में समाकर नदी हो गई
लहरों में बहकर एक दिन मैं किनारा हो गई
कतरा-कतरा लफ्जों को लिख मैं सागर हो गई
बूँद-बूँद बरसती रही कविता की मैं गागर हो गई
प्रति पल ईश्वर को सुमिरन कर मैं पुनिता हो गई
अंतर्मन के भावों की नदी बन मैं सलिला हो गई
हृदय की संगीत धुन में झंकृत हुई मैं वीणा हो गई
रोम-रोम को ओंस की बूंदें छू गई मैं कलिका हो गई
प्रेममद में बेसुध सी होकर मैं मधुशाला हो गई
ठोकर लगकर दुनिया की मैं पाषाण हो गई