डॉ.चौलेश्वर चंद्राकर ने भोपाल मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय संगोष्ठी 9,10 जनवरी को भाग लेकर होलकर वंश की महारानी अहिल्याबाई का ऐतिहासिक योगदान पर शोध पत्र वाचन कर सम्मानित हुऐ l
राष्ट्रीय संगोष्ठी “हिंदवीं स्वराज “ स्वबोध की ऐतिहासिक यात्रा स्वराज संस्थान संचालनालय संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित संगोष्ठी में अपना शोध आलेख “होलकर वंश की महारानी अहिल्याबाई का ऐतिहासिक योगदान “ विषय पर वाचन किया l शोध पत्र में विशेष रूप से अहिल्याबाई होलकर की संघर्ष त्याग तपस्या रेखांकित करते हुए कहा है कि भारतीय इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक शख्सियत के रूप में जानी जाती है l अहिल्याबाई ने इंदौर रियासत की रानी होकर भी अन्य क्षेत्रों में जाकर काशी बनारस, द्वारका गुजरात, पुरी उड़ीसा प्रयागराज उत्तरप्रदेश और अन्य महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों कई मंदिर, घाट, धर्मशालाओ का निर्माण करवाया इसके साथ ही गरीब जरूरतमंदों के लिए सामाजिक कल्याण योजनाएं प्रारंभ की अहिल्याबाई ने न केवल अपने राज्य का कुशलता से प्रशासन किया बल्कि वह महान नेता, सशक्त महिला धार्मिक आस्थाओ की सच्ची समर्थक भी थीं l अहिल्या बाई गांव की अन्य बालिकाओं जैसा ही थी l वह एक सीधी साधी और निश्चल प्रकृति की होनहार बालिका थी शिव भक्ति अटूट भरी हुई थी l उनका जन्म महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर जिले के चौढी नामक गांव में हुई थी l सामान्य परिवार में जन्म हुई थीं l विवाह 10 वर्षों में ही हो गया था अपने सास ससुर पति अन्य रिश्तेदारों से अगाध स्नेह रखती थी अहिल्या बाई के जीवन में बड़ा मोड तब आया जब उनके पति खंडेराव का असमय निधन हो गया l फिर ससुर 1766 उनके ससुर होलकर राज्य के संस्थापक मल्हारराव होलकर का निधन हुआ साथ ही उनके पुत्र मलेराव ,दामाद फणसे, दौहित्र नथु और पुत्री मुक्ता भी काल के गाल में समा गए l जिससे वह अपने जीवन में अकेली हो गई l इन दुखों ने उन्हें हताश किया लेकिन वे हार नहीं मानी उन्होंने अपने कर्तव्यों और प्रजा के प्रति अपनी जिम्मेदारी जीवन जीने की प्राथमिकता दी l अंत में अहिल्या बाई होलकर की 13 अगस्त 1795 को नर्मदा तट पर स्थित महेश्वर के किले में उनका निधन हुआ l महारानी अहिल्या बाई की दूरदर्शिता , साहस और परोपकार की भावना ने उन्हें न केवल एक महान शासक बल्कि एक प्रेरणाश्रोत भी बना दिया l उनका योगदान आज भी जीवित है और उनके कार्यों के परिणाम स्वरूप वे भारतीय इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ गई l उनके शासन काल की स्थाई धरोहर उनके द्वारा स्थापित किए गए मंदिर, धर्मशालाएं और उनके द्वारा किए गए सामाजिक कार्य इस बात का प्रमाण है कि वे एक सिर्फ रानी नहीं, बल्कि एक महान समाज सुधारक और धार्मिक नेता भी थी l राज्य अलंकरण एवं इतिहास के जानकार डॉ.चौलेश्वर चंद्राकर ने अपना शोध पत्र में प्रमुखता से मध्यप्रदेश भोपाल में आलेख किया l इस अवसर पर भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्तशासी संस्था ) द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी मध्यप्रदेश भोपाल में आईसीएचआर के अध्यक्ष प्रो रघुवेन्द्र तंवर जी , मनोज श्रीवास्तव जी पूर्व आईएएस , श्री प्रफुल्ल केलकर जी सहित अन्य राज्यो के इतिहासकार ,विद्वतजन शामिल रहें l