साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति शिव तंत्र से
प्रदीप नायक प्रदेश अध्यक्ष सदगुरु कबीर सेना छत्तीसगढ़
ब्रह्म पिशाच की आत्म कथा
मैं अपने एक शिष्य के घर ठहरा था। वह सत्संग में ज्यादा रूचि रखता था। तंत्र-मंत्र के पुस्तकों का अध्ययन करता था। वह मेरी पुस्तक शिव तंत्र पढ़कर आया। दीक्षा ग्रहण किया। वह अक्सर विदेश में रहता था। उसका अनन्य मित्र था। मंगलेश्वर। वह लगभग 28-30 वर्ष का युवक था। चूँकि वह हमारा शिष्य बना यह भी दीक्षा ग्रहण किया। एक रात्रि अपने घर पर रहने का आग्रह किया। उसका आग्रह स्वीकार करते हुए उसके घर गया। उसके घर में उसके पिताश्री, माताजी, पत्नी के अलावा उसके रिश्तेदारों ने स्वागत किया। रात्रि का पूजा पाठ हुआ। सत्संग हुआ। वहीं प्रसाद ग्रहण कर विश्राम किया। मेरे स्वागत के लिए घर खूब सजाया गया था। मेरे रात्रि विश्राम के लिए दूसरे तले पर व्यवस्था की थी। मैं ऊपर गया। वहाँ भी फूल-पत्तियों एवं सुगंधित द्रव्यों तथा नवीन वस्त्रों से कमरे को दुलहन बनाया गया था। सोने से पहले पति-पत्नी एक गिलास दूध लाये। मैंने दूध पी लिया। दोनों पैर दबाने लगे। मैंने कहा अब आप लोग अपने कक्ष में जाएं। दस बजे मेरा विश्राम का समय है। दोनों ने विनीत स्वर में पुत्र हेतु प्रार्थना की। हमारे घर में कोई पुत्र नहीं है। गुरु देव कृपा करें। मैंने कहा ठीक है। अब जाकर विश्राम करो। मेरे शिष्य भी नीचे ही थे। ऊपर की छत पर में अकेला था। सो गया। कमल (कम्बल) ओढ़ लिया था। ठंढक बढ़ रही थी।
अचानक मेरी आँख खुल गयी। मैंने घड़ी देखी रात्रि के ठीक बारह बज रहे थे। ऐसा क्यों हुआ? मैं तो चार बजे जगने वाला था। बत्ती बुझा दी गई थी। तभी सामने वाला जंगला खुल गया। खट् की आवाज हुई। एक धुंधला प्रकाश अन्दर आया। सामने हमारे पलंग के नीचे खड़ा हो गया। मैंने स्वीच आन कर दिया। प्रकाश फैल गया। वह व्यक्ति तीस-बत्तीस का होगा। हाथ जोड़कर प्रणाम किया। मैं एक बार आश्चर्य में पड़ गया। यह कौन है? कैसे जंगला से प्रवेश कर गया ? आखिर चाहता क्या है ?
मैं पलंग पर ही बैठते हुए जोर से बोला- तुम कौन हो ? इस तरह बिना आज्ञा के अन्दर क्यों आया? वह नम्र भाषा में बोला- स्वामी जी! मैं यहीं का रहने वाला हूँ। मेरा नाम कमलेश शर्मा है। आज से लगभग पाँच सौ वर्ष पहले मुसलमानों ने मेरी पत्नी पुत्री का धर्म परिवर्तन कर शादी कर ली। मुझे मार दिया। यही मेरा घर था। मैं प्रेत योनि में भटक रहा हूँ। ब्राह्मण था । इसलिए मुझे ब्रह्म प्रेत समझ लें। मेरा घर खण्डहर बन गया। फिर यहां पीपल का वृक्ष पैदा हो गया। उसी पर रहता हूँ। यह घर मेरे ही जमीन में है। इन्होंने मेरे जमीन पर घर भी बनाया। फिर हमारा स्थायी निवास पीपल वृक्ष के तनों, डालियों को काट दिया। नींव खोदने में जड़ें काट दीं। जिससे वृक्ष सूख जाये। फिर मैं कहां रहूँगा ।
मैंने कहा- तुम क्या चाहते हो ? इन्हें क्यों परेशान करते हो? गुरुदेव! आप इन्हें पुत्र होने का आशीर्वाद न दें। इनका खानदान समाप्त करूंगा। इस घर को पुनः खण्डहर में बदल दूंगा। फिर ये सभी प्रेत रूप में मेरे साथ रहेंगे। तुम्हारी पत्नी पुत्री 'को जिन्होंने ले लिया तथा तुम्हारी भी हत्या की, उन लोगों की हत्या तुमने क्यों नहीं की। उन लोगों की हत्या गुरुदेव! मैंने अपनी पत्नी एवं पुत्री को उनसे छीन लिया। वे मेरे ही साथ है। उस पापी का भी खानदान नाश कर दिया। में बहुत ह
हो गया हूँ। तुम्हें अपनी हत्या के बाद कैसा अनुभव हुआ ? तेज तलवार से मेरा सिर काट दिया गया। हमें ऐसा ज्ञात हुआ कि एक झटके में मैं शरीर से बाहर निकल आया। सामने अपना शरीर देखा छटपटा रहा था। रक्त बह रहा था। शत्रु हँस रहा था। मेरी सुन्दर पत्नी पर आसक्त था। वह रो रही थी। मेरी पाँच वर्ष की पुत्री शशि अत्यन्त दुःखी थी। मैं शरीर में वापस जाना चाहता था परन्तु जा नहीं सका। पुत्री को गोद में लेना चाहा, नहीं ले सका। शत्रु की तलवार छीन कर बदला लेने की तीव्र इच्छ हुई; नहीं कर सका। असहाय हो गया। फिर मुझे ज्ञात नहीं।
जब होश आया तो मैंने देखा कि एक पारदर्शी महल में हूँ। बहुत विशाल है। प्रकाश ही प्रकाश है। सुगन्ध है। दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं पड़ा। मैं अकेला था। तभी सामने एक बड़े आसन पर विराजमान एक व्यक्ति प्रकट हुए। उनके आँखों में तेज था। चेहरा तेजोमय था। उन्होंने मुझे घूरते हुए देखा, फिर बोले-तुमने अपना बहुमूल्य समय एवं मानव जीवन बर्बाद कर दिया। इसे ले जाओ। कुछ काल प्रेत-लोक में रख दो।
वह दृश्य गायब हो गया। मैं बोलना चाहता था। कुछ भी बोल नहीं सका। मेरे दोनों तरफ अत्यन्त भयंकर विशाल शरीर वाले काले व्यक्ति खड़े थे। ये पाँच की संख्या में थे। एक ने इशारा किया और आगे चल दिया। मैं उसके पीछे। मेरे पीछे चार चल दिए। क्षण भर में उस प्रकाश पूर्ण महल से बाहर निकल आया। धीरे-धीरे प्रकाश समाप्त होते गया। अब हम लोग गहन अंधेरे में चल रहे थे। सभी मौन थे। पता नहीं कब तक चलते रहे।
अति दुर्गंधित स्थल पर रूक गये। कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता था। अति कोलाहल मय स्थल था। वह सरदार बोला तुम्हें यहीं कुछ काल रुकना होगा। अभी चित्र गुप्त जी का यही आदेश है। फिर जैसा होगा तुम्हें बताया जायेगा। तुम इससे बाहर नहीं निकल सकते हो। ऐसा कहकर वे अन्तर्ध्यान हो गये। मैं वहीं भय से गिर गया चेतना लुप्त हो गई।
मेरे आस-पास कुछ मलिन आत्माएं बैठी थीं। वे सान्त्वना देने लगीं। बंधु तुमने भी पत्नी को नहीं समझा। वह उस पठान पर आसक्त थी। पठान भी उस पर। तुम्हारी पत्नी के सहयोग से तुम्हारी हत्या हुई है। उसने तुमसे पहले भी चार बर बोला था न कि तुम गरीब ब्राह्मण हो, मुझे छोड़ दो। साधु बन जाओ। बहुत लोग पत्नी के छोड़ने पर, मरने पर साधु होते हैं। तुम समझ लो कि मैं मर गयी। परन्तु तुम तो पत्नी के सुन्दरता पर आसक्त थे। वह पठान पर आसक्त थी। यदि तुम साधु संत हो ही जाते तो आज तुम्हारी पूजा देवता भी करते। यह गति नहीं होती। एक-एक कर सारे दृश्य उभर कर मेरे सामने आने लगे। मैं हतप्रभ था कि ये कौन हैं? कैसे मेरे बारे में ये जानते हैं। मेरी वाणी मौन थी। वे लोग मुझे सहारा देकर साथ ले चले। दूर-दूर तक कुछ भी नहीं दिखाई देता था। मात्र छाया छाया ज्ञात होती। दुर्गंध, चीत्कार, पीड़ा-क्रंदन, दारूण दुःख ही ज्ञात होता ।
कुछ काल के बाद मैं यह सब देखने सुनने, समझने का अभ्यस्त हो गया। लोगों से परिचय भी बढ़ गया। यहाँ सभी आत्माएं ऐसी ही थीं जिनकी हत्या की गई थी। अधिकांश आत्माएँ प्रतिशोध की अग्नि में जल रही थीं।
????प्रेत योनि में वासना????
मैंने पूछा- क्या उन्हें बदला लेने का अवसर प्राप्त होता है ?
हाँ गुरुदेव! ये आत्माएँ कभी-कभी समूह में बाहर आ जाती हैं। जब पृथ्वी लोक में एक साथ आती हैं, तब उपद्रव, अराजकता फैला देती हैं। जैसे भयंकर दंगा का रूप ग्रहण कर लेंगी। गाड़ियाँ आपस में लड़ा देंगी। बस लड़ा देंगी। आपस में जंग छेड़ देंगी। घोर अराजकता फैला देती हैं। अधिसंख्य दंगा, उपद्रव एवं हत्या में इनकी अहम भूमिका होती है। जैसे पृथ्वी पर पुलिस फोर्स गिरफ्तार करती है। वैसे ही यहाँ भगवान शंकर के गण गिरफ्तार करते हैं। उन्हें विभिन्न प्रकार के दण्ड देते हैं। भयभीत कर विभिन्न लोकों में हस्तांतरित करते हैं। समय-समय पर भगवान शंकर के गण हमें उपदेश भी देते हैं। हत्या के चक्र को रोको शान्ति के मार्ग का अनुसरण करो तुम व्यर्थ ही अपनी शक्ति को बर्बाद करते हो।
तुम प्रेत योनि में कैसे काम वासना की पूर्ति करते हो? मैंने पूछा। गुरुदेव देखिए। अपनी काम पिपासा की पूर्ति के लिए अपने अनुकूल स्त्री की खोज करते हैं जिस पर आसानी से अधिकार कर सकें। जो लड़की पूजा पाठ ध्यान नहीं करती है। उसके मस्तिष्क पर प्रभाव डाल कर अपने वश में करते हैं तब इच्छित शरीर धारण कर उससे संभोग करते हैं। फिर उसे पत्नी की तरह ही रखते हैं। जो प्रेत इच्छित शरीर नहीं धारण कर सकता है; वह इच्छित स्त्री पुरुषों के मस्तिष्क पर अपना प्रभाव डालता है। उन्हें एक दूसरे की ओर आकर्षित कर परिस्थिति ही ऐसी निर्माण कर देते हैं कि वे दोनों सभी मर्यादायें भूलकर सहवास में प्रवृत हो जाते हैं। उसके सहवास के सुख की अनुभूति अपनी होगी। उसी से हमारी वासना तृप्त हो जाती है। इसी तरह से जो प्रेतात्मा प्रतिशोध लेना चाहती है। वह भी अपने शत्रु के मस्तिष्क पर इसी तरह का प्रभाव डालकर झगड़ा मार-पीट करा देती है। खून, कत्ल भी करा देती है। जो व्यक्ति सद्गुरु के शरण में होता है। उसके मस्तिष्क पर उसके गुरु का अधिकार होता है। उस पर हमारा प्रभाव नहीं पड़ता है। बल्कि उसके साधना से जो आभा का प्रकाश मण्डल बनता है, उस प्रकाश मण्डल से हम लोग भयभीत रहते हैं।
अच्छा दूसरे एवं अन्तिम प्रश्न का उत्तर दो-प्रेत कितने तरह के होते हैं गुरुदेव जितने तरह के आदमी उतने ही तरह के प्रेत आदमी ही तो प्रेत बनता है। इस तरह से मुख्यतः दो तरह के प्रेत होते हैं। प्रथम-वासनात्मक प्रेत दूसरा सूक्ष्म शरीरी प्रेत ये दोनों विभिन्न लोकों में रहते हुए भी बराबर भौतिक जगत से सम्पर्क बनाए रहते हैं। उनका जीवन यापन वैसे ही है जैसे भौतिक जगत में होता है। हम लोगों के पास मन है परन्तु इन्द्रियां नहीं हैं। हम लोग संकल्प शक्ति से मनोनुकूल सृष्टि कर लेते हैं। फिर उसका विसर्जन भी कर देते हैं। मैंने पूछा- तुम क्या चाहते हो ?
गुरुदेव मेरी वेदना तो आप सुने नहीं खैर मैं चाहता हूँ कि इस योनि से हो जाऊँ। यह यदि संतान सुख चाहता है तो इस गृह का परित्याग कर दे। जब तक मुझे रहना है। यहीं रहूँगा। मुक्त
मैंने पूछा- आप कैसे मुक्त होंगे? गुरुदेव ! आप हमारा क्रिया कर्म करा दें। मेरे लिए स्वयं पिण्डदान दें। इसके बाद मुझे तारक मंत्र दें। तब मैं शिव लोक में पहुँच सकता हूँ। या सम्भव है मैं दूसरा जन्म लेकर आपके जैसे महात्मा के शरण में जाकर तप कर मुक्ति पा लूँगा। मैंने उससे कहा- तू तो मानस शक्ति से यात्रा कर सकता है। तुम मेरे वाराणसी स्थित आश्रम पर सम्पर्क करना। वहीं तुझे भगवान शिव के लोक में प्रवेश करा दूँगा। तुम्हें कुछ दिन उस आश्रम पर सत्संग सेवा का अवसर भी उपलब्ध हो जायेगा।
क्रमशः....