चल पड़ी हूं मैं...
premdeep
चल पड़े हैं मेरे कदम,
तुम्हारी जहान के लिए...
तलाश रही हूं तुम्हें,
अपनी ज़मीं आसमान के लिए।
तुम्हारा नूर मिल जाए मुझे,
मेरी दास्तान के लिए...
कितने बरस बीत गए,
निगाहों में तुम्हारी प्यास लिए।
दम घुटता है तंग गलियों में,
मिल जा मुझे तू गुलजार लिए...
ओ रब तू रब मेरी,
आ हमेशा के लिए, तू साथ मेरे।।