ग्राम धरा लगती ज्यों मधुबन
डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
ग्राम धरा लगती ज्यों मधुबन
ग्राम धरा लगती ज्यौं मधुबन
मस्त बयार खुला वातायन
लोक कला मिसरी-सी बोली
ढोल मंजीरा धुन रामायण।
गाँव गुड़ी चौपाल सुहाना
लोकगीत का ताना बाना
उड़ती गौ रज पावन जन-धन
नीरज गंध ताल मखाना
साँझ ढ़ले सुन लोक तराने
सांझा सुख-दुख मानों बिरवा
बँटता नेह खुशी अपनापन।
कोलाहल ही राह नापती
चका चौंध की देखा-सीखी
स्वारथ धोखा लोभ अडे हैं
हँसी दिखावा लगती फ़ीकी
शहरी चोला चाल-चलन हैं
सूनी गलियाँ सूना आँगन।
भ्रम पालता मनुज भागता
अंधीअभिलाषा नत दौड़े
नगर भागता मन को भरने
अंध-गंध से नाता तोड़े
किंचित क्लेश चिंता दे विचलन
रोक ग्राम से आज पलायन।