वीरानियाँ
श्यामा चंद्राकर मोना✍️ रायपुर छत्तीसगढ़
जिन गलियों में बेपरवाह घूमते थे हम कभी
उन गलियों की वीरानियाँ अब मेरी तलाश में है
जिसकी दोस्ती का दम भरते थे हम कभी
उसके हिस्से की नफ़रत अब मेरी तलाश में है
जिस किस्से का आगाज़ खूबसूरत था कभी
उसका ग़मगीन अंजाम अब मेरी तलाश में है
जिस गुलाब की पंखुड़ियाँ मुझे पसंद थी कभी
उसका हर एक काँठा अब मेरी तलाश में है
जिस राह पर हम सब दोस्त साथ चलते थे कभी
उस राह की तन्हाईयाँ अब मेरी तलाश में है