ना वो‌ प्रेम, ना वो बारिशें रहीं

मोना चन्द्राकर मोनालिसा रायपुर छत्तीसगढ़

ना वो‌ प्रेम, ना वो बारिशें रहीं

पहले बरसती थीं सावन में बारिशें भी अविरल सी...
जैसे प्रेम बरसता था सबके दिलों में...

जमीन भी बंजर हो गई, अब ना वो बारिशें रहीं...
दिल भी सबके प्रेम से रिक्त हो गए, अब ना वो प्रेम की फुहारें रहीं...

जब दिलों में ही एक-दूसरे के प्रति प्रेम की फुहारें ना रहीं...
तो फिर प्रकृति अपना प्रेम कहां से बरसा पायेगी...