साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति शिव तंत्र से

प्रदीप नायक प्रदेश अध्यक्ष सदगुरु कबीर सेना छत्तीसगढ़

साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति शिव तंत्र से

????श्वास के मोड़ पर रुक जाओ????

    जब श्वास नीचे से ऊपर की ओर मुड़ता है और जब श्वास ऊपर से नीचे की ओर घूमता है-इन दो मोड़ों पर उपलब्ध हो जाओ।

शिव द्वारा प्रदत्त दूसरी विधि पहली विधि से मिलती जुलती है। यदि आप किसी भी विधि से रुक जाते, देख लेते हैं तब और विधि अपनाने की जरूरत नहीं, सारे आयाम अपने आप खुल जाते हैं आप जरा शारीरिक संरचना समझ लें। मनुष्य का शरीर सात करोड़ कोशिकाओं से निर्मित है। सभी कोशिकाएं जीवंत हैं। ऊर्जा से भरी हैं। सबका अपना अलग अस्तित्व है। ऐसा समझें सात करोड़ जनता है शरीर रूपी एक महानगर है। सभी व्यवस्था ठीक-ठाक है। कहीं कोई गड़बड़ी नहीं है। समयानुसार सभी अपना-अपना कार्य करते हैं। वैज्ञानिक इस संरचना को बहुत जटिल परन्तु सुदृढ़ कहते हैं। वे कहते हैं कि शरीर के बराबर कोई यंत्र बनाया जाये तो कम-से-कम चार वर्ग मील से 6 वर्ग मील जगह लेगा। वह इतना शोर करेगा कि सौ वर्ग मील से डेढ़ सौ वर्ग मील का एरिया प्रदूषण युक्त होगा। अब आप सोचेंगे इतनी बड़ी व्यवस्था कौन चला रहा है। मानव इतराता है मैंने यह कर लिया, वह कर लिया। परन्तु वह अपने ही अन्दर एक सेल का क्रिया क्रम नहीं देख सकता। कितनी है आपकी कार्यक्षमता। अब तंत्र कहता है इस नगर को चलाने वाला नगरपति कौन है? कहाँ रहता है। क्या उससे साक्षात्कार सम्भव है ? बिल्कुल है इसी क्षण है।

दूसरी विधि मोड़ पर जोर दे रही है पहली विधि अन्तराल पर। आप श्वास अन्दर लेते तथा अन्दर का श्वास बाहर करते तब एक वर्तुल बन जाता है। जैसे भीतर जाने वाला श्वास आधा वर्तुल और बाहर आने वाला, आधा वर्तुल, यही हुआ पूरा वर्तुल श्वास-प्रश्वास मिलकर। शिव कहते हैं मोड़ों को प्राप्त कर लो और कुछ करना नहीं है बस आत्मा उपलब्ध हो जायेगी। जब श्वास अन्दर जा रहा है तब कहीं मोड़ है। बस उसी मोड़ पर रुक जाना है। जैसे आगे गाड़ी चलाते समय गेयर का प्रयोग करते हैं। सब गेयरों के साथ न्यूट्रल गेयर होता है जब आप गेयर बदलते हैं तब उस न्यूट्रल गेयर से गुजरना पड़ता है। गाड़ी उसी गेयर के अनुसार गतिशील होती है परन्तु गाड़ी खड़ी करते समय न्यूट्रल गेयर में कर देते हैं। गाड़ी खड़ी हो जाती है। ठीक उसी तरह मोड़ ही न्यूट्रल गेयर है। उसी जगह ध्यान को ले जाना है। आप गाड़ी चालक से गेयर समझ सकते हैं। उसी तरह गुरु से इस मोड़ को साकार कर लें। जब श्वास नीचे से ऊपर की तरफ लौटती है और फिर जब श्वास ऊपर से नीचे की तरफ घूमती है इन दो मोड़ों पर उपलब्ध हों। श्वास के साथ अन्दर जायें मोड़ पर सजग रहें। श्वास के साथ अन्दर आयें मोड़ पर सजग रहें। उस घुमाव बिन्दु पर साक्षी की तरह, दृष्टय की तरह रहना है। ज्यों ही उस मोड़ पर रुकते हो क्षण भर के लिए फिर क्या ? अब घटना घट जाती है। यदि श्वास ही जीवन है तो आप मृत हो गये। अगर श्वास ही शरीर तब आप अशरीर हो गये। अगर श्वास ही मन है तब आप अमन हो गये। अब श्वास ठहर गया। आप ठहर गये। सारा जगत् मानो ठहर गया। चूँकि नजर पड़ती वहीं है। अब सब ठहर जायेगा। सद्गुरु कबीर कहते हैं। इसे किसी से मत कहो। कहेगा तो कौन मानेगा। लोक वेद भी नहीं मानता। अतएव अन्तर्मुखी हो मौन हो जाओ। कहो अहो भाग्य गुरुदेव ! आपकी अनुकम्पा हमारे साथ बस धन्यवाद, समर्पण ही काफी है।

   _ ????केन्द्र पर रुको????_

    जब कभी अन्त: श्वास और बर्हिश्वास एक-दूसरे में विलय होते हैं, उस क्षण में ऊर्जा रहित, ऊर्जा- पूरित केन्द्र को स्पर्श करो।

   इस तंत्र में शिव केन्द्र को स्पर्श करने को कहते हैं। केन्द्र क्या है? केन्द्र के यहाँ ही सारा रहस्य छिपा है। हम श्वास पूर्ण कभी नहीं लेते। बच्चे को सोते हुए गौर से देखें उसका पेट पूरा नीचे चलता है। यानी वह पेट से नाभि से श्वास लेता है। श्वास तो नाक से ही लेता है। नाभि तक जाता है। जो व्यक्ति जितना ही गहरा श्वास लेता है वह उतना ही ऊर्जा से भरा जीवंत होता है। जीवंत व्यक्ति का काम, क्रोध, अहंकार, लोभ भी सुन्दर हो जाता है। आप जरा अपना ध्यान कृष्ण की तरफ ले जायें। भीष्म सेना का नाश करते जा रहे हैं। पाण्डव पक्ष में हाहाकार मच गया। है। सभी भागने लगे। अर्जुन भयातुर हो कहते हैं- हे केशव ! ये पितामह भीष्म नहीं हैं साक्षात् काल सामने आ गया है इससे अब युद्ध सम्भव नहीं है। केशव जबकि वचन दे चुके हैं महाभारत में, मैं अस्त्र-शस्त्र ग्रहण नहीं करूँगा। फिर भी केशव चक्र उठा लेते हैं। दौड़ जाते हैं पितामह की तरफ कहते हैं- रुक जा पितामह। आप भी हद कर दिए। यह कृष्ण का क्रोध है। अत्यन्त बच्चे की तरह पावन पवित्रता, जिसे देख भीष्म जैसी प्रतिभा देखते ही रह जाती है। वह युद्ध भूल जाते हैं। नैसर्गिक सौन्दर्य को देखते हुए कहते हैं हाँ-हाँ केशव आ जा। हम तुम्हें आज गले से लगा लें। तुम्हारा वास्तविक रूप आज निखर आया है कृष्ण हँसते हुए रुक जाते हैं। यह है केशव का क्रोध आप किसी नन्हे से बच्चे की तरफ ध्यान ले जाएँ माँ दूध देती है, तुतला बोलता हुआ दूध गिरा देता है। क्रोध करता है। उसका चेहरा सुन्दर खिल जाता है। वहीं क्रोध देखें साधारण आदमी का वह क्रोध से हॉफने लगता है। उसका चेहरा बदसूरत नज़र आने लगता है। बलात्कारी का चेहरा खूंखार भेड़िये की तरह नजर आने लगता है। आखिर ऐसा क्यों ? यही रहस्य है केन्द्र का।

साधक को गहरा से गहरा श्वास लेना चाहिये। यदि श्वास मूलाधार चक्र तक चला जाये तो अति उत्तम। तब तो अचानक ऊर्जा का विस्फोट होता है। कामशक्ति भी वहीं है। वह कामशक्ति भी प्रबल हो ऊर्ध्वगामी हो जाती है। जब श्वास अन्दर जाता है तब ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। चूंकि शरीर में सात करोड़ नागरिक हैं, जिनके सम्यक पोषण के लिए अनवरत ऊर्जा की आपूर्ति की आवश्यकता है अतएव जो श्वास जाता है ऊर्जा से परिपूर्ण होकर जाता है। जो बाहर निकलता वह ऊर्जा रहित होता है। यानी जो जाता है आक्सीजन के साथ पूर्ण ऊर्जा एवं जो बाहर आता है वह कार्बनडाइऑक्साइड के साथ विजातीय गैस यानी शरीर विज्ञान के लिए ऊर्जा रहित होता है। अतएव वह केन्द्र जहाँ ऊर्जा पूरित है तथा वहीं से ऊर्जा रहित बाहर भी आता हो। उसी केन्द्र बिन्दु को अनुभव से पकड़ लें। फिर हो गया सब कुछ प्राप्त, हो गया आत्मदर्शन। साधारण साधक पहाड़ पर भागते हैं आखिर क्यों ? इसमें भी बहुत रहस्य है। हमारे साथ भी कुछ साधक 3.6.95 को हिमालय की चढ़ाई पर चढ़ रहे थे। दिन भर में लगभग चालीस कि० मी० यात्रा तय किया। हँसते-हँसते। हालाँकि शेष पाँच-छह व्यक्ति तो तीन दिन में थकान से पूर्ण यात्रा किये। मात्र दो जो हमारे साथ चल सके, याद दिलाते रहे कि देखो गहरा श्वास अपने आप हो रहा है। प्राणायाम अपने आप हो रहा है। मात्र उसे देखते रहो। खेचरी में रहो। देखो अमृत जल भी तेज आ रहा है। बस उनकी यात्रा आनन्द बन गयी। जो चढ़ाई चढ़े उनकी अभिशाप। पहाड़ पर यात्रा करते अनजाने ही गहरा श्वास केन्द्र को छू जाता है। जहाँ, स्पन्दन मालूम होता है खुश हो जाते हैं। अतएव सजग साधक सदैव गहरा श्वास ले एवं उसके साथ-साथ यात्रा करे। जब अन्त: श्वास बहिश्वास एक-दूसरे में विलय होते हैं, उस क्षण में ऊर्जा रहित, ऊर्जा पूरित केन्द्र को स्पर्श करो। बस यात्रा पूर्ण हो गयी।

    ????श्वास का ठहरना????

    शिवोक्त एक-एक विधि पूरा वेद है। पूरा का पूरा बाईबिल, पूरा कुरान है। सभी विधियाँ अपने आप में अनमोल हैं। बेहद बेशकीमती हैं अनमोल रत्न की तरह। इसमें नव विधियाँ श्वास पर हैं और भिन्न हैं। जगत् के किसी न किसी काम से जोड़कर ही विधि दी गयी हैं। अतएव हम श्वासगत नवविधि को तो जरूर देखेंगे सम्भव है अन्य एक-दो विधि भी देख लें। शिव कहते हैं-जब श्वास पूरी तरह बाहर गया है और स्वतः ठहरा है और पूरी तरह भीतर आया है, ठहरा है, ऐसे जागतिक विराम में व्यक्ति का क्षुद्र अहंकार विसर्जित हो जाता है। केवल अशुद्ध के लिए यह कठिन है।

शिव अब श्वास के ठहराव पर जोर दे रहे हैं। यह ठहराव शुद्ध के लिए सरल है। अशुद्ध के लिए कठिन है। अशुद्ध जिनका मन काम, क्रोध, लोभ, अहंकार इत्यादि वासना से भरा है। उसका श्वास कैसे ठहरेगा। श्वास के ठहरते ही मन ठहर जाता है। काम, लोभ, क्रोध या किसी भी वृत्ति के आक्रमण पर श्वास तेज हो जाती है। तब मन की गति तेज हो जाती है। शुद्ध रहने पर श्वास सामान्य रहता है अब वह केन्द्र तक जायेगा। ठहर जायेगा। मन ठहर जायेगा। इसी से शिव जहाँ जाते ठहराव पैदा कर देते हैं। शिव को ठीक-ठीक समझने वाले बहुत कम हुए। सब शिव के नाम पर दुकानें चलाने वाले हुए। शिव जब शादी करने के लिए जाते हैं, नाचते गाते। उनकी शिष्य मण्डली भी उसी रस में मस्त है सभी खेचरी मुद्रा के द्वारा मद पी लिए थे। सभी अपने में मस्त थे। वे मस्ती में, उत्सव में थे। कोई नंगे हैं, तो कोई ताण्डव की मुद्रा में, तो कोई खप्पड़ लिए हैं। उन्हें अपने शरीर का भान नहीं है। ऐसे व्यक्ति को कौन स्वीकार करेगा तथाकथित् सभ्य समाज कैसे बर्दाश्त करेगा। देवी के माँ-बाप शादी से इनकार कर दिए। गाँव के रास्ते के सारे लोग देखकर भाग चले। ये पागलों की जमात है। भाग चलें। भागना ही क्षणभर के लिए ठहराव है। ठहराव सा आ गया सब लोगों में। यह भी शिव का तंत्र था। अनमोल जिसे कोई समझ नहीं पाया।

इस विधि को भारतीय लोग स्वीकार नहीं कर सके। इसे जापान के झेन फकीर ने देखा करीब से प्रयोग किया पाये बहुत हो अनमोल है वे अपने शिष्यों के साथ बैठ जाते। गप्पें करते। एकाएक प्रहार कर उठते । एकाएक मार उठते । एकदम ठहराव सा आ जाता। शिष्य निश्चिन्त है। उसे क्या उम्मीद गुरु मारेगा परन्तु कभी भी खाते वक्त, सोते वक्त प्रहार कर देते। बस वहीं ठहराव आ जाता रुक जाते। श्वास रुक जाता। मन ठहर जाता। क्षुद्र अहंकार अपने आप विसर्जित हो जाता। आत्मा को उपलब्ध हो जाते। यह जीवन का रहस्य है। ये विधियाँ देखने ..में, सुनने में छोटी हैं परन्तु आणविक हैं। वैज्ञानिक सदैव छोटे नगर से आते हैं अपनी छोटी प्रयोगशाला में अणु पर परमाणु पर काम करते। अकेले लगे रहते हैं। परन्तु नेता हर समय भीड़ में रहता है। बड़े दफ्तर में रहता है। लेकिन आप देखें हिटलर, माओ, खुश्चेव को जो भीड़ में काम किये तथा आइन्सटीन गैलीलियो, न्यूटन व डार्विन जो अपनी-अपनी छोटी-छोटी प्रयोगशाला में काम किये। किस की कितनी मानवता को देन है। आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं।

क्रमशः....