मेरे ख्वाबों की बस्ती
Premdeep
ख्वाबों की बस्ती बसाई है जहां
तन्हाई की रात चांदनी पूछती है ठहरे हो क्यों यहां,
तलब है उनकी इन्हें बताऊं कैसे,
चांद बिरहन छुपाती है निकलती है
मेरे दीवानेपन को देख कभी हंसती है।
इंतजार में बैठा हूं सदियों से तन्हा
जोड़ लिया है नाता मैंने अंधेरों से,
सुकून पल भर को ही सही,दिल को मिल जाता है यहां...!!