लोकाचार नहीं

प्रेमदीप

लोकाचार नहीं

लोकाचार नहीं आचरण में लाना होगा,
हिंदूत्व तो को संगठित कर

 घर घर दीप जलाना होगा।
तिमिर के काजल को छोड़,
केसरिया माथे पे लगाना होगा।
खाली नारो से राजनीति नही,
सोया मानवता को जगाना होगा।

कुटिलता शहद में खोले हुए हैं,
अपने पराए का भेद मिटाना होगा। 
रेत का घर टिकता कहां है,
जड़ को मिट्टी से बंधाना होगा।

आंधी उमड़ी है स्वार्थ की,
स्वाभिमान के पांव से दबाना होगा।
राष्ट्रीय हित के लिए हवा में नहीं,
यथार्थ मैं स्वयं को लाना होगा।