भारतीय राजनीति के "अटल स्तंभ" श्री अटल बिहारी वायपेयी

भारतीय राजनीति के "अटल स्तंभ" श्री अटल बिहारी वायपेयी

भारतीय राजनीति के "अटल स्तंभ" अटल बिहारी वायपेयी' जी, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और राजनीतिक कौशल से देश वासियों और समस्त राजनीतिक दलों का दिल जीता। अटल जी अपनी बातों और इरादों के भी अटल थे। जब तक सियासत की; अपने और उसूलों पर फैसले लिए, सबसे महत्वपूर्ण बात कि उनके फैसले और सोच को विपक्ष भी मौन स्वीकृति देते हुए साथ खड़ा नजर आता था। श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेई बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे उन्होंने लंबे समय तक एक पत्रकार के रूप में अपनी भूमिका निभाई। राष्ट्रधर्म पांचजन्य और वीर अर्जुन जैसे राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत कई प्रकार की पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।

राष्ट्रीय क्षितिज पर सुशासन के पक्षधर, विकास पुरुष और स्वच्छ छवि के साथ सुचिता की राजनीति करने वाले कवि; सरस्वती पुत्र अटल बिहारी वाजपेई जी एक व्यक्ति का नाम नहीं था बल्कि एक स्वतंत्र विचारधारा के प्रतिबिंब थे। जिसमें राष्ट्र और समाज कल्याण के कई मंत्र छिपे थे। आज भी देश और दुनिया भर के सियासी जगत से जुड़े लोग अटली के व्यक्तित्व से सीखते हैं, राजीनितक सफलता के मंत्र खोजते हैं। अटल बिहारी वाजपेई एक उदारवादी छवि वाले महान व्यक्ति थे, जिन्होंने पूरा जीवन देश की सेवा के लिए समर्पित कर दिया उनकी विचारधारा से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में युवा भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा बने और उन्हें बड़ी संख्या में जनसमर्थन प्राप्त हुआ।

अटल बिहारी वाजपेई एक ऐसा नाम जिनकी छवि ने भारतीय राजनीति में एक आदर्श स्थापित किया। उनका पूरा जीवन आज भी सरकारों के लिए सुशासन का संदेश है, जनकल्याण का कर्तव्य बोध है। उन्होंने अपने इसी विराट व्यक्तित्व के जरिए बच्चे, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों सभी के बीच लोकप्रियता के शिखर को छुआ। अटल बिहारी वाजपेयी जी से जुड़ी एक खास बात ये भी कि वे सादगी और सरलता की मूरत थे, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई जी सदैव जमीन से जुड़े रहकर देश के लोगों के बीच अलग पहचान बनाई और प्रधानमंत्री के रूप में सभी के दिलों में बस गए।

अटल बिहारी वाजपेई जी जनसंघ के संस्थापकों में शामिल थे और भारतीय जन संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को न सिर्फ आत्मसात किया बल्कि भारतीय राजनीति में उनके मूल्यों को स्थापित करने का काम भी किया। अटल बिहारी वाजपेयी जी के भाषणों ने सबसे ज्यादा देश के लोगों को प्रभावित किया, वे जब बोलते थे तो देश बड़े ही ध्यान से सुनता था। अटल बिहारी वाजपेई जी के ओजस्वी भाषणों ने संसद में भी सभी दलों के प्रतिनिधियों को प्रभावित किया। छत्तीसगढ़ राज्य की सौगात देने वाले भी अटल जी थे, उन्होंने छत्तीसगढ़ की जनता से जो वादा किया था उसे पूरा करके दिखाया। 

बतौर प्रधानमंत्री अटल जी युगों-युगों तक अपने कई ऐतिहासिक और विकास आधारित फैसलों के लिए भी याद किए जाएंगे। प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने कई ऐसी योजनाएं चलाईं, जिससे देश के विकास की रफ्तार कई गुना बढ़ गई, उन्हीं में से एक स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना थी। उन्होंने चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को जोड़ने के लिए यह योजना लागू की। इतना ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना लागू की अटल जी के इस फैसले से देश में जो क्रांतिकारी परिवर्तन आया उसकी सराहना भी देशभर में हुई। दशकों से जिसकी राह देश की ग्रामीण जनता देख रही थी, उन सपनों को साकार करने का काम अटल जी ने किया। इसके अलावा जल संरक्षण को लेकर भी आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी सदैव संवेदनशील रहे, उन्होंने नदियों को जोड़ने की योजना का खाका भी तैयार करवाया।

भारतीय राजनीति के आजाद शत्रु अटल बिहारी वाजपेयी जी राष्ट्र की सुरक्षा को लेकर भी सदैव संवेदनशील रहे, वे सदैव इस प्रयास में लगे रहते थे भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित हो। एक वक्त ऐसा भी आया जब परमाणु परीक्षण का निर्णय लिया गया, लेकिन उस समय भारत पर परमाणु परीक्षण ना करने का दबाव बनाया जा रहा था, बावजूद इसके अटल जी ने तत्कालीन वैज्ञानिक अब्दुल कलाम जी के साथ मिलकर परमाणु परीक्षण करने का निर्णय लिया। दुनिया को इस बात का पता ना लगे और हमारा परीक्षण भी सफल तरीके से पूरा हो जाए अटल जी इसी कोशिश में थे, मगर यह बात अमेरिका को पता चल चुकी थी; जिसके बाद उसने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए, मगर फिर भी अटल जी ने बिना डरे देश को प्रगति के पथ पर आगे लेकर आए।

अटल बिहारी वाजपेई जी सदैव शिक्षित समाज बनाने की दिशा में चिंता करते थे, यही वजह है कि साल 2000 और 2001 में उन्होंने 14 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का अभियान छेड़ा। अटल जी के इस फैसले का सकारात्मक परिणाम भी सामने आया, आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई बीच में छोड़ देने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई। साल 2000 में जहां 40 फ़ीसदी बच्चे ड्रॉपआउटस होते थे उनकी संख्या 2005 आते-आते 10 फ़ीसदी के आसपास रह गई। खास बात यह है कि सरकार के इस अभियान को प्रमोट करने वाली जो थिमलाइन थी 'स्कूल चले हम' खुद अटल बिहारी वाजपेई जी ने लिखी थी। दशकों तक शिक्षा के अभाव में निरक्षर हो रहे समाज में शिक्षा क्रांति लाने का काम अटलजी ने किया, ये देश, समाज सदैव उनके इस प्रयास के लिए ऋणी रहेगा। 

अटल बिहारी वाजपेई सदैव अपने मित्र राष्ट्रों के साथ बातचीत से समाधान की तरफ बढ़ने के पक्षधर रहे, उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ संबंध और अधिक मित्रता पूर्ण बनाने का संकल्प लिया था। अपने इस संकल्प को पूरा करने के लिए सबसे पहले उन्होंने पाकिस्तान के साथ सार्थक वार्ता की भरपूर कोशिश की। उसी का परिणाम था कि 20 फरवरी 1990 को लाहौर तक बस यात्रा का आयोजन किया गया, 21 फरवरी को लाहौर में नागरिक अभिनंदन हुआ दुनिया भर के नेताओं और बुद्धिजीवियों ने अटल बिहारी वाजपेई की इस यात्रा को सराहा और उनके इस फैसले का स्वागत किया। इससे पहले भी जब वे देशज संस्कृति को लेकर बेहद गंभीर रहते थे, 4 अक्टूबर 1977 की ये तारीख कोई कैसे भूल सकता है, जब अटल जी ने संयुक्त राष्ट्र सभा को हिंदी में संबोधित किया था। वह संयुक्‍त राष्‍ट्र की 32वीं आम बैठक थी। वह दौर शीतयुद्ध के चरम का था। पूरी दुनिया किसी न किसी के पक्ष में थे। भारत उस वक्‍त में गुटनिरपेक्षता की आवाज बुलंद कर रहा था। वाजपेयी ने मंच से खुद को 'नौसिखिया' बताया था, मगर ये भी कहा था कि 'भारत अपने प्रादुर्भाव से लेकर अब तक किसी भी संगठन से सक्रिय रूप से जुड़ा नहीं रहा है।' 'वसुधैव कुटुम्‍बुकम' का सिद्धांत दोहराते हुए वाजपेयी ने पूरी दृढ़ता से भारत का पक्ष रखा। वाजपेयी जी का वह भाषण उनके संपूर्ण राजनीतिक जीवन के सबसे प्रभावशाली और अहम संबोधनों में सदैव याद किया जाएगा।

मौजूदा दौर में आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को अटल जी का वास्तविक उत्तराधिकारी कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि अटल जी के बाद माननीय नरेंद्र मोदी जी भी अहिंसा के रास्ते पर चलकर दुनिया भर में रिश्ते मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं, उन्होंने कई देशों के साथ अपने मित्रवत संबंधों की एक नई इबारत लिखने का काम किया। दुनिया भर में भारत का प्रभाव स्थापित करने वाले पीएम नरेंद्र मोदी जी अटलजी के सपनों के भारत का नवनिर्माण कर रहे हैं।