आत्मा की उड़ान
Premdeep
आत्मा की उड़ान है
फिर क्या धरती फिर क्या अंबर
आना जाना लगा है यहां...
ना हम जागीर ना सियासत किसी का...
अपना जीवन है सुगंध की तरह...
फिज़ा में खुली खुशबू उन्हीं का
आनंद उल्लास सब में हूं मैं,
मेरे होठों पर मुस्कान उन्हीं का
मेरे हाथ बस प्रेम की पाती
गुमान नहीं मुझे किसी का
मेरी खुशी का अंदाज निराला है
हम राही है उस प्रेम पथ का...।।