बस्तरः एक बाध्य नक्सली

[22:24, 11/9/2025] Dr.HemantSirmour: देश आजादी के 100 वर्ष पूरे होने की ओर बढ़ रहा है। 2047 का सपना सरकार और समाज के हर मंच पर गूंज रहा है। "विकसित भारत' की गाथाएँ सुनाई जा रही है। लेकिन जब हम इन सपनों को धरातल पर परखते है तो बस्तर जैसे आदिवासी अंचल हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या विकास की यह यात्रा वास्तव में सबको साथ लेकर चल रही है?
अनसुना बस्तर विकास की परिधि से बाहर
छत्तीसगढ़ राज्य में बड़े शहर रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, राजनांदगांव अक्सर योजनाओं, निवेश और नीतियों का केंद्र बनते हैं। मगर बस्तर, जहाँ की आबादी का बड़ा हिस्सा आदिवासी है, अब मी विकास की मुख्यधारा से कटता जा रहा है।
बस्तर के जंगल, खनिज संपदा और सांस्कृतिक धरोहर पर तो बार-बार यहाँ होती है, लेकिन यहाँ के युवाओं के शिक्षा अधिकार और रोजगार अवसर प्रायः अनसुने रह जाते हैं।
उच्च शिक्षा व्यवस्था में गहरी जर्ड जमाता भ्रष्टाबार
किसी भी क्षेत्र की प्रगति की असली नींव उसकी उच्च शिक्षा होती है। अगर विश्वविद्यालय और कॉलेज पारदर्शिता, गुणवत्ता और समान अवसर पर काम करें तो ये पूरे क्षेत्र को आगे ले जा सकते हैं।
लेकिन दुर्भाग्य से छत्तीसगढ़ की उच्च शिक्षा व्यवस्था लंबे समय से अनियमितताओं से ग्रस्त रही है
मर्ती प्रक्रिया में अपारदर्शिता, योग्य उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर सिफारिश और भ्रष्टाचार को प्राथमिकता।
संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण प्रावधानों का उल्लंघन, आदिवासी और वंचित वर्गों को मिलने वाले अवसरों का हनन।
नर्ती नियमों और शासन आदेशों की अवहेलना, नियमानुसार जाँच और चयन प्रक्रिया का पालन न करना।
स्थानीय युवाओं की उपेक्षा, बाहरी उम्मीदवारों को तरजीह देकर स्थानीय प्रतिभा को दबाना।
अन्य शहरी विश्वविद्यालयों में कार्रवाई, पर बस्तर अब भी उपेक्षित
पं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, उद्यान एवं वानिकी विश्वविद्यालय और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (IGKV) में समय-समय पर अनियमितताओं की जाँच और कुछ कार्रवाइयों हुई हैं।
लेकिन हैरानी की बात है कि बस्तर विश्वविद्यालय में गंभीर शिकायतों और सबूतों के बावजूद अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
हस्थिति कंवल प्रशासनिक लापही नहीं है बल्कि यह आदिवासी विरोधी मानसिकता की और भी संक्त करती हैनानी बस्तर की आवाज को एक परंपरा बन गई हो।
नवयुवक और "बाध्य नक्सलवाद'
युवाओं के पास जब शिक्षा और रोजगार के अवसर न हीं जब उन्हें अपने ही विश्वविद्यालय और शासन से न्याय न निले, तब वे धीरे-धीरे व्यवस्था से भरोसा होने लगते हैं।
यही निराशा उन्हें विकास के मार्ग से अलग करके हथियार की राह पर ले जाती है।
बस्तर में नक्सलवाद का बीज केवल जंगलों और गरीबी ने नहीं बोया। इसका असली कारण है चपेक्षा, अन्याय और असमानता ।
[22:26, 11/9/2025] Dr.HemantSirmour: जब विश्वविद्यालयों में आरक्षण का पालन न हो.
जब योग्य युवाओं को रोजगार न मिले,
जब भ्रष्टावार और भाई-भतीजावाद शिक्षा को निगल जाए,
तो युवाओं के सामने दो ही रास्ते बचते हैं। या तो प्रवासन कर बढ़े शहरों में मजदूरी करना या फिर गुस्से और अन्याय से उपजे आंदोलन का हिस्सा बन जाता।
यही कारण है कि आज बस्तर का युया "बाध्य नक्सली बनता जा रहा है।
विकसित भारत का सपना और बस्तर की हकीकत
सरकार 2047 तक विकसित भारत' का सपना दिखा रही है। लेकिन अगर बस्तर जैसे अंचलों को न्याय और अवसर से वंचित रखा गया तो यह सपना अधूरा ही रहेगा।
विकसित छत्तीसगढ़ केवल रायपुर, दुर्ग या बिलासपुर से नहीं बनेगा। असली विकास तब होगा जब बस्तर, दंतेवाडा, नारायणपुर और कांकेर जैसे क्षेत्र भी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में बराबरी से खड़े होंगे।
समाधान की दिशा
अंगर बस्तर को "बाच्य नक्सलवाद की गिरफ्त से बचाना है. तो सरकार और समाज को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगेकू
1-
मर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
2-
आरक्षण और संविधानिक प्रावधानों का कड़ाई से पालन हो।
3-स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता दी जाए।
4-
विश्वविद्यालयों पर स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच कमेटी बने।
5-
आदिवासी अंचलों में उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए विशेष नीति लागू हो।
निष्कर्ष
बस्तर केवल जंगलों और खनिजों का इलाका नहीं है। यह देश का वह हिस्सा है जहाँ की धड़कने भी भारत के भविष्य से जुड़ी हुई हैं।
अगर आज हम बस्तर के युवाओं को न्याय, शिक्षा और समान अवसर नहीं देंगे तो कल यह असमानता ही हिंसा और नक्सालवाद का रूप लेगी।
इसलिए, 2047 की बातें तभी सार्थक होंगी जब बस्तर के हर युवा को यह महसूस हो कि यह देश उसका भी है, यह