धीरे धीरे नंदागे गर्मी के तिरीपासा।
जितेन्द्र कुमार वर्मा "वैद्य" खैरझिटी धमधा

जउन खेलय पासा ,
ओकर पुरा नई होए आशा,
चार झन खेलईय्या में,
एक के होथे तमाशा ।
पच्चीस घर के खेल हे,
चार चार बैला के मेल हे,
गर्मी छुट्टी के खेल हे,
खेल में कोनो नई होए हतासा,
काबर कि ए हरे तिरीपासा।।
अब जमाना हे मोबाइल के,
लइका के स्टाइल के,
अब मोबाइल गेम के का करबे आशा,
धीरे धीरे नंदागे गर्मी के तिरीपासा।।