मंजिल......... कभी ना कभी तो मिलेगी

मोना चन्द्राकर मोनालिसा रायपुर छत्तीसगढ़

मंजिल......... कभी ना कभी तो मिलेगी

अपने वजूद की तलाश में भटकती रहती हूं दर-बदर...
कोई ना कोई मंजिल मेरे लिए भी बनी होगी...

राह कहती है यहां नहीं है तेरी मंजिल ऐ बेखबर...
कुछ कदम और चलने होंगे तुम्हें अभी...

बहुत सारे मुकाम आते गये मेरी राह पर...
पल भर के लिए लगा यहीं ठहर जाऊं...

मंजिल पुकारती है और चलना है तुम्हें राह गुज़र...
बहुत दूर बनी है मंजिल तेरी यूं थक कर ना बैठ...

अब आयेगी मेरी नज़र लगी रहती है मंजिल पर...
मन कहता है अभी और चल और चल...

कदम ना ठहर जाये मेरे कहीं हार कर...
इसलिए उम्मीद का एक आस जगाती हूं दिल में...

अभी और चल अभी और चल...
तेरी मनचाही मंजिल आना बाकी है...

मंजिल......... कभी ना कभी तो मिलेगी