वो भी क्या दिन थे

मोना चंद्राकर श्यामा✍️ रायपुर छत्तीसगढ़

वो भी क्या दिन थे

जब हम बच्चे थे बहुत सच्चे थे
इरादों के पक्के थे उमर के कच्चे थे

वो भी क्या दिन थे

बचपन के दिन सुहाने हसीन थे
कई सावन महीने आए रंगीन बहुत थे

वो भी क्या दिन थे

जब अमरिया में बौर लगा करते थे
सहेलियों संग अमिया तोड़ा करते थे

वो भी क्या दिन थे

स्कूल से घर तक पैदल जाया करते थे
शाम को सहेलियों संग घूमा करते थे

वो भी क्या दिन थे

•टीवी में सिग्नल के लिए एंटीना हिलाया करते थे
किराये पर सीडी लाकर फिल्में देखा करते थे

वो भी क्या दिन थे

दूर बैठे किसी रिश्तेदार को खत लिखा करते थे

तब मोबाइल और इंटरनेट नहीं हुआ करते थे

वो भी क्या दिन थे

गिल्ली-डंडा, नदी-पहाड़ खेत खेला करते थे
गुड्डे-गुड़ियों का ब्याह रचाया करते थे

वो भी क्या दिन थे

सावन में झूला डाल झूला करते थे
किसी बाग में आम चुराने जाया करते थे

वो भी क्या दिन थे

पुराने जमाने में सबके पास समय होते थे
परिवार संग मौज मस्ती के दिन हुआ करते थे

वो भी क्या दिन थे